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वे बोले – 'अपने भाई के विरुद्ध मैंने दावा किया है ?"
वे बोले – 'मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी । भाई ने कहा, किराये के मकान में न रहकर मेरे साथ रह जाओ । अब मैंने अपना मकान बनवा लिया है । मैंने उनसे कहा यदि तुम मुझे तीन लाख रुपये दो तो मैं मकान खाली कर दूँगा । उन्होंने रुपये देने से इंकार करते हुए कहा तुम मेरे भाई हो यह घर भी तुम्हारा है। जब तक रहना चाहते हो रह सकते हो मैं तुम्हें रुपये नहीं दे सकता हूँ ।'
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भाइयों के इस संवाद को सुनकर मेरी आश्चर्य की सीमा न रही। एक तो चोरी फिर सीना चोरी ।
वह रोज रामायण का पाठ करता था फिर भी राम - भरत के बंधुत्व - प्रेम का उसमें अंश मात्र भी प्रवेश नहीं हुआ ।
कैकयी ने जब राम से वन में जाने के लिए कहा तो बिना किसी अशांति के राम ने केवल इतना ही कहा, 'माँ तुमने मेरे मन की बात कही है। मेरा भाई भरत शाश्वत सुख प्राप्त करे इसके लिए तो मैं हमेशा के लिए वन में रहने को तैयार हूँ ।'
भरत ने भी जब तक राम वन में रहे, तब तक महल में रहकर भी तप किया । भरत ने भी अन्न नहीं खाया ।
आप ही बताइए क्या दुनिया में भाइयों का ऐसा उच्च व्यवहार मिलता है ?
आज रामायण पढ़ने वाले, महाभारत को चरितार्थ कर रहे हैं । भाई-भाई कोट में लड़ते हुए दिखाई देते हैं। दोनों का ही नाश होता है कितना आश्चर्य जनक है। इसका कारण व्यक्ति की स्वार्थ बुद्धि है। जब तक व्यक्ति का स्वार्थ समाप्त नहीं होगा तब तक रामराज्य की स्थापना नहीं की जा सकती है ।
आज हम छोटी-सी बात पर दुःखी हो जाते हैं और सोचते हैं कि मुझे अमुख व्यक्तियों ने अपमानित किया है, अमुक व्यक्ति के कारण मेरी यह स्थिति हुई है, पर वह यह भूल जाता है कि कहीं-न-कहीं मेरी भी ग़लती रही होगी । इसलिए मुझे समझाया गया है। अपने सकारात्मक सोच के अभाव में, अहंकार में या स्वार्थ वृत्ति के कारण ऐसा होता है। मैं बड़ा हूँ मैं जो सोचूँ, कहूँ
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