Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 60
________________ इन सब निरपराधियों को क्यों पिल रहे हो ? पालक के सिर पर वैर का बदला लेने का भूत सवार था । अतः उसने एक-एक शिष्य को भेजने का आदेश दिया। कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुआ। स्कन्दक ने अपने मुनियों से कहा- सावधान ! संकट आया है । उपसर्ग आया है । संथारे का प्रत्याख्यान करो, सबसे क्षमा याचना करते हुए मोह - ममता का त्याग करो तथा परमात्मा में ही लीन बनो । - आचार्य के एक-एक शिष्य अपने गुरु को वंदना करके संथारे का प्रत्याख्यान की आराधना करने लगे। आचार्य महाराज ने कहा • मंत्रीवर्य तुम सबसे पहले मेरा नंबर ले लो। तुम्हें जो कष्ट देना है वह कष्ट मुझे दो। मेरे इन शिष्यों को छोड़ दो। मंत्री ने कहा – मैं तुम्हारे ही सामने तुम्हारे शिष्यों को एक-एक करके पीलूँगा । फिर तुम्हारा नंबर आएगा । नर पिशाच एक - एक शिष्य को घाणी में पील रहा है । गुरु महाराज आराधना करवा रहे हैं । रक्त की धारा प्रवाहित हो रही है । फिर भी मंत्री शांत नहीं हुआ। उसने 499 साधुओं को निदर्यता से कोल्हू में पील दिया। अब एक बाल साधु बचा था। उसके प्रति आचार्य श्री का मोह जाग्रत हो गया। उन्होंने पालक से कहा – यह मेरा छोटा शिष्य है । इसे बाद में पीलना। पहले मेरा नंबर लगा दो । पालक नहीं माना। आचार्य महाराज को क्रोध आ गया। इधर छोटासा मुनि गुरु महाराज से कह रहा है कि मेरे को आराधना करवाओ, पच्चक्खाण करवाओ पर क्रोध के वशीभूत आचार्य महाराज ने एक नहीं सुनी। उन्होंने क्रोध के वशीभूत होकर कहा, अगले भव में तुम्हारी क्या स्थिति होगी ? यहाँ वे संयम व मर्यादा से चूक गए और बोलते गए । Jain Education International ―➖ निर्दयी पालक ने छोटे से संत को कोल्हू मे पीला दिया। इस प्रकार पाँच सौ शिष्य अपने मन को पूर्णतया निर्मल, निर्द्वन्द्व और दृढ़ रखने के कारण आराधना, साधना करते हुए मोक्ष चले गए, पर अपने छोटे से शिष्य की बारी पर आचार्य श्री का मोह जाग गया, भाव बदले। वे अपने मन को पूर्णतया कषाय रहित नहीं रख पाए । परिणाम स्वरूप अशुभ भाव और विचारों के कारण वे मोक्ष में जाने से वंचित रह गए। मात्र मोह के कारण उत्पन्न अशुभ भाव उनके मोक्ष गमन में बाधक बने । For Personal & Private Use Only | 59 www.jainelibrary.org

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