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कैसे सुधारें विचार और वाणी
यह हमारे हाथ में है कि हम गले मिलने की बात करते हैं या गला काटने की।
तत्त्वार्थ सूत्र में जीव के पाँच भाव बताए हैं, औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक। जिस प्रकार कार चालक आवश्यकतानुसार गियर बदलता है उसी प्रकार हमारा मन भी विचार रूप गियर बदलता रहता है। यदि चालक उस कार को चलाते समय भली भाँति कन्ट्रोल नहीं करे तो दुर्घटना हो सकती है। और यदि मनुष्य अपनी वाणी और विचार पर कन्ट्रोल नहीं करेगा तो अनेक दुष्परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यदि सृष्टि में भी कन्ट्रोल नहीं हो तो वहाँ भी विनाश लीला ही दृष्टि गोचर होगी। हमारे सामने जीता-जागता उदाहरण है हीरोशिमा और नागासाकी । यह दो बड़े शहर परमाणु बम पर कन्ट्रोल नहीं करने के कारण विनष्ट हुए और अब तक न मालूम कितने बम विस्फोट होकर असंख्य व्यक्तियों की जीवन लीला को समाप्त कर रहे हैं। यह विस्फोट हमारे कुत्सित विचारों को कन्ट्रोल में नहीं करने का परिणाम है। ठीक इसी तरह व्यवहारिक जिंदगी में मन और वाणी अनियंत्रित होने से भयंकर अनर्थ हो सकते हैं।
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