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कारावास की सजा हो गई थी । आज उच्च न्यायालय ने उसकी अपील स्वीकारते हुए उसे कत्ल के आरोप से बरी कर दिया। वह ख़ुशी से झूम उठा। उसने फोन पर अपने गैंग के सदस्यों और परिजनों को सूचना दी कि शाम तक वह घर पहुँच रहा है । पार्टी की तैयारी कर लें। बरी होने की ख़ुशी में उसने जम कर शराब पी और टैक्सी कार से अपने गाँव की ओर चल पड़ा। रास्ते में वह कार की धीमी गति से बार-बार झुंझलाने लगा और अंत में टैक्सी चालक को एक भद्दी-सी गाली देते हुए उसे ज़बरदस्ती हटाकर ख़ुद कार को तेज गति से लहराते हुए चलाने लगा। कुछ देर बाद ही वह कार पर नियंत्रण नहीं रख सका और कार सड़क किनारे एक पेड़ से टकरा कर उलट गई। सिर में भारी चोट के कारण वह मौके पर ही मर गया। शाम को उसके परिजन व मित्र, कुल क़रीब सवा - डेढ़ सौ लोग, उसके घर पर मालाएँ लिए उसके स्वागतार्थ इंतजार में खड़े थे शाम को उसका माल्यार्पण तो हुआ लेकिन उसके शव पर ।
ये व्यसन जन्म लेते हैं हमारे नेत्रों में, रहते हैं दिल में, बढ़ते हैं इन्द्रियों के संसर्ग से और मरते हैं उपासना के घर में । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हमारे सामने है - रावण की आँख बिगड़ी, मन बिगड़ा, विचार बिगड़े, भाषा बिगड़ी, जीवन बिगड़ा और सम्पूर्ण परिवार देखते ही देखते समाप्त हो गया । यहाँ तक कि रावण का नाम भी बिगड़ गया। लोग अपनी संतान का नाम राम, कृष्ण, भरत आदि तो रखते हैं पर किसी ने अपने बच्चे का नाम आज तक रावण नहीं रखा है।
कई लोग कहते हैं महाराज श्री हमने पुण्य किया है तभी तो हमें धनदौलत मिली है । हम इसका उपभोग करके सुख प्राप्त ही तो कर रहे हैं। वे यह नहीं जानते कि वह पुण्य किस काम का जो हमें व्यसनों में फँसाकर बर्बाद करे । पुण्य वही उपादेय है जिससे धर्म आदि में बुद्धि बनी रहे। जो हमें दुर्गति से बचावे |
एक साधु भोजन करने कहीं जा रहे थे । उन्होंने देखा एक शराब की दुकान पर कुछ व्यक्ति परस्पर अत्यन्त प्रेम एवं हर्ष के साथ शराब पी रहे थे । संन्यासी गुण ग्राहक व्यक्तित्व का धनी था उसके मन में विचार आया रे मन ! प्रेम सीखना है तो इनसे सीख। इतना प्रेम तो मेरे भी मन में नहीं है। भोजन करने
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