Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 40
________________ उसने बताया, मेरी बीबी घर के नौकर के साथ भाग गई है और मैं उसका कारण समझ नहीं पाया आख़िर ऐसा क्यों हुआ? मुझे यह सुनकर जोर की हँसी आई कि जो व्यक्ति इसका कारण भी ढूँढ़ नहीं पा रहा है उसके डिग्रीयों का क्या अर्थ ? कहीं हमारी शिक्षा भी तो ऐसी नहीं है। ____ हमें शिक्षा ग्रहण करते समय यह चिंतन करना है कि हमारी जिंदगी का उद्देश्य क्या है? उसके आधार क्या होंगे? हम भविष्य को कैसे उज्ज्वल बनाएँगे? जीवन में परिवर्तन के आधार ढूँढ़ते जाएँगे तभी शिक्षा हमारे लिए सार्थक हो पाएगी। कहने का अभिप्राय यह है कि शिक्षा तभी तक सशिक्षा कहला सकती है और सार्थक बन सकती है जब हम उसे आचरण में उतारने का प्रयत्न करें। व्यक्ति अपने ज्ञान को चिंतन, मनन, संयम और साधना से व्यावहारिक तथा आत्मिक उन्नति में सहायक बना सकता है। जिस व्यक्ति का ज्ञान मात्र तर्कवितर्क, वाद-विवाद के लिए होता है वह उसके उत्थान में बाधक होता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति मिथ्याचार, दुराचार, पापाचार को नष्ट करके आध्यात्मिक बल को बढ़ाता है। वह जीवन-विकास के सारे द्वार खोल लेता है। ( जिस प्रकार कोई व्यक्ति पानी में गोते खाए बिना तैराक नहीं बन सकता उसी प्रकार शिक्षा को आचरण में नहीं लाए बिना मानव अपने जीवन का लेश मात्र भी भला नहीं कर सकता है। शिक्षा परिणाम तभी देती है जब दीक्षा उसके साथ जुड़ी हो। ___ कहते हैं एक बार सीता ने राम से कहा – 'भगवन् ! मेरे चरण आपसे ज़्यादा सुंदर हैं, क्योंकि आपके श्याम है और मेरे गोरे हैं।' दोनों में संवाद छिड़ गया। इसी बीच वहाँ लक्ष्मण आ गए। लक्ष्मण ने पूछा - 'भैया! आख़िर बात क्या है ?' राम ने पूरी बात बताई और कहा – 'तू हमारा न्यायाधीश है। जल्दी से बता और निर्णय दे कि दोनों में से किसके चरण सुंदर हैं ?' लक्ष्मण यह सुनकर धर्म संकट में पड़ गए। सोचने लगे – 'भैया-भाभी के झगड़े में मेरा क्या काम!' राम बोले - 'नहीं, निर्णय तुम्हें ही करना है।' लक्ष्मण परेशान कि यदि प्रभु के चरण सुंदर बताता हूँ तो सीता मैया को कष्ट होगा और यदि सीता | 39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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