Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 22
________________ लिया है, पर व्यावहारिकता, विनम्रता, गुण ग्राहक व्यक्तित्व अभी भी नहीं सीख पाएँ हैं । केवल आत्म प्रशंसा करना जानते हैं । बलराम के आते ही श्याम स्नान करने गया। सेठजी ने बलराम की भावनाओं से परिचित होने, परीक्षा लेने और अध्ययन की जानकारी प्राप्त करने के लिए उससे श्याम के बारे में पूछा। बलराम ने कहा, 'अरे सेठजी! स्नान से पवित्र हुए के समक्ष आपने किस मूर्ख का नाम ले लिया वह तो बैल है। बनारस में उसने पढ़ाई नहीं की। मेरे साथ है इसलिए लोग उसे भी पंडित समझते हैं।' ___ सेठ भोजन के प्रबंध करने का कहकर चले गए। समय होने पर दोनों पंडितों को ससम्मान भोजन कक्ष में आमंत्रित किया गया। सेठ ने उन्हें आसन ग्रहण करने के लिए निवेदन किया। दोनों के समक्ष अलग-अलग ढकी हुई भोजन की थाली रखी गई। ____ दोनों ने जैसे ही वस्त्र हटाया थाली देखकर आक्रोश में भर आए, भौहें टेढ़ी हो गई, होठ फड़फड़ाने लगे, नाथूने फूलने लग गए। दोनों चिल्लाए – सेठजी हमारा ऐसा घोर अपमान! यह क्या परोसा है ? चूँकि, भोजन इंसानों का न होकर जानवरों का था। सेठजी ने प्रेमपूर्ण निवेदन करते हुए कहा, आप दोनों ने जो परिचय दिया उसके अनुसार भोजन ऐसा ही होता है। दोनों ने एक दूसरे को देखा। सेठ के चरणों में गिरकर प्रणाम करते हुए कहा- सेठजी! आपने हमारी आँखे खोल दी हैं । हमने मात्र क़िताबों का ज्ञान प्राप्त किया। सद्विचार, सद्व्यवहार, सआचार, सत्संगति के अभाव में हम ईष्यालु, द्वेष-भाव से युक्त हो गए थे। स्वयं को श्रेष्ठ एवं दूसरे को नीचा दिखाने के भाव से हमारा मन ग्रसित हो गया था। अब हम समझ गए हैं कि जीवन का सत्य क्या है? मन का पवित्र होना आवश्यक है। आज इस संसार में प्रेम की गंगा सूख गई है और धरती पर चारों तरफ़ विद्वेष, कलह और विघटन की दरारें पड़ गई हैं। स्वयं को श्रेष्ठ बताकर दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश ने इंसान का विकास अवरुद्ध कर दिया है। हमें मन को शुद्ध करने के लिए ईर्ष्या की मानसिकता का त्याग करके शुभ भावों का विस्तार करना चाहिए। शुभ भावों | 21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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