Book Title: Bahetar Jine ki Kala
Author(s): Chandraprabhashreeji
Publisher: Jain Shwetambar Panchyati Mandir Calcutta

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Page 14
________________ अभिमान करना चाहिए न ही दु:खों से घबराना चाहिए। उपकारी के उपकार को कभी नहीं भूलना चाहिए। सभी से मैत्री भाव रखते हुए सहयोग और सेवा की भावना सदा रखनी चाहिए। विश्व के जितने भी महापुरुष हैं, वे हमें सदा प्रेरणा देते हैं जो तुम्हारा बुरा करे उसका भी भला करो, समता से सब कुछ सहन करो।पुण्य अनुकूलता और सुख प्रदान करता है जब कि पाप प्रतिकूलता और दुःख का कारण है। यदि हमारे ऊपर पाप के काले बादलों का उदय हो गया है तो व्यक्ति कितना भी परिश्रम करे उसे इन्हें झेलना ही पड़ेगा। हमें दुःख से घबराने की बजाय इनकी जड़ों अर्थात् पापों से दूर रहना चाहिए। प्रकृति का यह नियम है यहाँ जो अपनी ओर से दिया जाता है पुनः वही लौटकर आया करता है। इसलिए तुम्हें अपनी ओर से दूसरों को वही देना चाहिए जो तुम दूसरों से प्राप्त करना चाहते हो अगर गाली चाहते हो तो गाली और गीत चाहते हो तो गीत दो। हम समझ गए होंगे कि पुण्य भी लोटता है और पाप भी लौटकर आता है। यदि दुःख से मुक्त होना है तो पाप से मुक्त होना होगा। इस संसार में पापी अपने पाप से ही पकता है अर्थात् दुःखी होता है। दुनिया में पापियों का जीना और मरना दोनों ही अहितकारी है, क्योंकि वे मरने पर अंधकार (दुर्गति) में पड़ते हैं और जीवित रहकर प्राणियों के साथ वैर बढ़ाते हैं। जिससे उन्हें इस संसार में भी अनेक तरह से दुःख भोगने पड़ते हैं। हाल ही में गुड़गांव में किडनियों को निकाल के बेच कर करोड़ों का फ़रोक्त धंधा करने वाला डॉ. अमित गुप्ता आज अपने किये कर्मों पर पछता रहा है और दुःखों को भोग रहा है।यदि वह ऐसे ग़लत कार्यों से स्वयं को दूर रखता तो आज वह सुख की रोटी वचैन की नींद ले रहा होता। बबूल का बीज बोकर आम की आशा रखना व्यर्थ है वैसे ही पाप का आश्रय ले पुण्य-फल की,सुख-प्राप्ति की आशा रखना दुराशा मात्र ही है। सूत्रकृतांग में कहा गया है - सीहो जहा खुड्डमिगा चरंता, दूर चरति परिसंकमाणा। एवं रवु मेहावी समक्खि धम्मं, दूरेण पावं परिवज्जएजा॥ | 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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