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पाप लौहे की।सोने की बेड़ी मन को सुहाती तो है, पर भव-भ्रमण से मुक्त होने के लिए दोनों जेल की तरह है।
विदेश में एक जेल है। जिसकी प्रत्येक कोठी रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, फ्रिज, ए.सी., डनलप आदि सुविधाओं से युक्त है। उसे एक विद्वान देखने गया। देखने के पश्चात् जेल अधिकारी ने विद्वान से पूछा, आप सलाह दीजिए हम इसमें और क्या सुधार करें। विद्वान ने हँसकर कहा – आपने इस जेल के कमरों को सभी सुविधाओं से युक्त बनाया है, पर स्वतंत्रता बिना सुविधाएँ किस काम की; शांति बिना सम्पत्ति किस काम की। सुविधाओं में बंधन तो है ही।कैदी को सजा पूर्ण करनी ही पड़ती है।।
पाप का परिणाम सुविधा रहित सजा है और पुण्य का परिणाम सुविधायुक्त सजा है, पर जीवन का मज़ा दोनों सजाओं से मुक्त होने में हैं। इन्द्रियजन्य सुख का कारण पुण्य है और इन्द्रियजन्य दुःख का कारण पाप है। कुत्ता यदि पुण्यात्मा है तो करोड़पति के यहाँ अत्यन्त सुख-सुविधाओं को भोगेगा पर बंधन साथ रहेगा और कुत्ता यदि पापात्मा है तो गलियों में दर-दर की ढोकरें खाता फिरेगा। इस पुण्य-पाप के तमाशे को संसार का खेल कहा गया है। इतिहास भी साक्षी है कि मनुष्य के जीवन में सुख-दु:ख, पुण्य-पाप पहिये के आरे के भाँति घुमते-फिरते हैं। ____ मैंने कई लोगों के मुँह से भगवान से मौत माँगते हुए देखा है। जीवन में थोड़ा-सा दुःख, प्रतिकूलता या मन के विपरित हालत बनते ही व्यक्ति घबरा जाता है, निराश हो जाता है उसे लगता है ऐसी जिंदगी किस काम की ? एक पति अपनी पत्नी से तंग आ गया। वह मंदिर में जाकर भगवान से प्रार्थना करने लगा, 'प्रभु, मुझे दुनिया से उठा ले।' तभी पास में खड़ी पत्नी ने कहा, 'प्रभु, मुझे भी तुरंत उठा ले।' पति ने कहा, 'प्रभु, तू इसकी सुन, मैं अपनी अर्जी वापस लेता हूँ।' ऐसा सोचना स्वयं से हारना है, जीवन से हारना है। संसार का सत्य यही है यहाँ हर चीज़ परिवर्तनशील है, पर व्यक्ति सुख को नित्य मान लेता है
और दुःख आते ही हार जाता है। जिंदगी की जंग जीतने का अर्थ है –जो विपत्ति के समय आए कष्टों को समभाव से सहन कर लेता है, उस समय भी किसी को अपना शत्रु नहीं समझता उसी व्यक्ति की जीत होती है।
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