Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ [ ४६४ ] श्रीवीरचरितम च्यते तच्चसूत्रानुगमेसति भवति तच्छेद, तेण कालेण इत्यादि, तेणंत्ति प्राकृत् शैली वशात तस्मिन् काले वर्तमानावसपिण्याश्वतारकडक्षणे, एवं तस्मिन् समये तद्विशेषे, यत्रासौ भगवान् देवान दायाः कुक्षौ दशमदेवलोकागत पष्पोत्तर नाम्नो विमानादवतीर्णः, णमिति शब्दो वाक्यालकारार्थो, यथा इमाणं पढवी इत्यादा वितिद्वितीयोपिण शब्दो एवमेव, अथवा सप्तम्यर्थे आषत्वात् तृतीया एवं हेतौवा, ततस्तन कालेन तेन च समयेन हेतु भूते नेतिव्याख्येयम्, अथतच्छब्दस्य पर्वपरामर्शितत्वादन किं परामश्यते, इतिचेत, उच्यते, यौकालसमयौ भगवता श्रीऋषभस्वामिना उन्यैश्च तीर्थंकरैः श्रीवर्द्धमानस्य षगणां धवनादीना हेतुत्वेन कथितौ तावेवेतिब्र मः, प्रमणमतपस्वी भगवान् समग्रैश्वर्यादिगुणयुक्तो महावीरः कर्म शत्र जयाद न्वर्थनामा चरम जिनः, पंच हत्थत्तरेत्ति हस्तस्यैवोत्तरस्यां दिशिवर्तमानत्वातहस्तोतरा हस्तउतरोयासांता हस्तोत्तरा उत्तराफलगुन्यः, बहुबचन बहुकल्याणकापेक्ष,पंचसु च्यवन, गर्मा पहार, जन्म, दीक्षा, ज्ञान कल्याणकेषु, हस्तोत्तरायस्य स तथा च्यवनादीनि पंचोत्तरा फाल्गुनीषु जातानि,निर्वाणस्यच स्वातौ संभूतत्वा दितिभावः होत्थति अभवन् । अव उपरोक्त चारोंही गच्छोंके विद्वानों कृत ६ पाठों का संक्षिप्त भावार्थः-कहते हैं सो पर्वाधिराज श्रीपर्युषण पर्वमें मांगलिक के लिये श्रीजिनेश्वर महाराजोंके चरित्र कथन करने में आते हैं जिसमें प्रथम वर्तमान शासन नायक नजीक उपकारी जानकर श्रीभद्रबाहुस्वामीजीने श्रीकल्पस त्रकी मादिही, तेणं कालेणं तेणं समयेणं इत्यादि, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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