Book Title: Ath Shatkalyanak Nirnay
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ [ ४६३ ] महावीरेत्ति,कमवैरि पराभव समर्थः,श्रीवर्द्धमान स्वामीत्यर्थः स, पचहत्युत्तरेरित, हस्तोत्तरा उत्तराफाल्गुनयः गण नया ताभ्यो हस्तस्य उत्तरत्वात् ताः, पंचसु स्थानेषु यस्य स पंच हस्तोत्तरो भगवान् होत्थरित अभवत् ॥ पच हस्तो. तरत्व भगवतो मध्यम वाचनया दर्शयति॥ हत्थत्तराहिं चुएत्ति, उत्तरा फाल्गुनीषु च्यतः प्राणतामिधान दशम देवलोकात्, चहरतागम्भं वक्वतेत्ति, च्यत्वाग) उत्पन्नः । १। इत्युत्तराहिं गम्भाओगम्भंसा. हरिएत्ति, उत्तरा फाल्गुनीषु गर्भात गळे महतः, देवा नदागर्भातत्रिशलागः मुक्त इत्यर्थः ।। हत्थ तराहि जाएत्ति, उत्तराफाल्गुनीषु जातः । हत्थःतराहिं मुंडे भविता अगारा ओ अणगारि पठवइएत्ति, उत्तराफाल्गुनीघु मुंडोभत्वा, तद्रव्यतो मुंडः केशलु चमेन, भावतो मुडो रागद्वषाभावेन, आगारात् गृहात् निष्क्रम्येति शेषः अनगारित्तां साधुतां, पव्वइएत्ति, प्रतिपन्नः ॥४॥ तथा उत्तराफाल्गुनीषु (अण तेत्ति, अनतवस्तू विषयं, अनुत्तरेत्ति, अनुपम, निव्वाघाएति, निर्व्याघातं भित्तिकटादिभिरस्खलितं, निरावरणेरित, समस्तावरणरहितं, कसिणेत्ति, कृत्स्न सर्व पर्यायोपेत, सर्ववस्तू ज्ञापक, पडिपुणेति, परिपूर्ण सर्वावयव संपन्न, एवं विधं यत् वरं प्रधान केवलज्ञान केवल दर्शन च तत् समुपन स्ति, तत्पन्न उत्तरा फाल्गुनीषु प्राप्तं ॥५॥ सारणापरिनिवडे भयवं इति स्वाति नक्षत्र मोक्षागतो भगवान् ॥६॥ ७-औरमी श्रीपाश्चंद्रगच्छके श्रीब्रह्मर्षिजो कृत श्रीदशाश्रुत स्कंध सूत्रको वृत्तिका पाठ नीचे मुजन है: वर्तमान तीर्थाधिपतित्वनासन्नोपकारित्वात आदौ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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