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( १२ )
अपरोक्षानभृतिः ।
पुरुषार्थ विशिनष्टि शुभमिति शुभं परमानन्दरूपत्वेन मंगलं मोक्षसुखमित्यर्थः इच्छता प्रार्थयता आत्मनः शुभमिति वान्वयः ॥ १० ॥
भा. टी. ऊपर कहे हुए वैराग्य आदि साधनों करके युक्त अपना शुभ चाहनेवाले पुरुषको ज्ञानकी सिद्धिके निमित्त विचार करना योग्य है । (ऊपर कहे हुए साधनोंकर के युक्त ) इसकारण कहा कि 'शान्तो दान्तः' ऐसी वेदकी श्रुति है अर्थात् शम, दम युक्त पुरुष वेदान्तका अधिकरी होय है । जैसे और जगह भी कहा है “प्रशान्तचित्ताय जितेन्द्रियाय प्रक्षीणदोपाययथोक्तकारिणे ॥ गुणान्वितायानुगताय सर्वदा प्रदेयमेतत सकलं मुमुक्षवे ॥ १ ॥ " शान्तचित्त जितेन्द्रिय दोपरहित शास्त्रोक्त कार्य करनेवाले शास्त्रोक्त गुणोंकरके युक्त शुभ आचरण करनेवाले तथा मोक्षकी इच्छा करनेवाले पुरुषको यह शास्त्र देना चाहिये ॥ १० ॥
( ज्ञानकी आवश्यकता )
नोत्पद्यते विना ज्ञानं विचारेणान्यसा'धनैः ॥ यथा पदार्थमानं हि प्रकाशेन विना कचित् ॥ ११ ॥
सं. टी. ननु ज्ञानसिद्ध्यर्थं विचार एव कर्तव्य इति नियमः कुतः क्रियत इत्याशंक्य लदृष्टांतमाह नोत्पद्यतइति विचारेण विना अन्यसाधनैः कर्मोपासनालक्षणैः