Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas
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संस्कृतटोका-भाषाटीकासार्हता (३९) स्वीकार करते हैं तिसकी अपेक्षा और पुरुषार्थता क्या होगी ॥ ४३ ॥
इत्यात्मदेहभेदन देहात्मत्वं निवारितम्॥इदानींदेहभेदस्य ह्यसत्त्वं स्फुटमुच्यते॥४२॥ सं. टी. भेदज्ञानस्याभेदज्ञानप्रति कारणत्वादात्म देहविभागकथनं नानर्थकमित्याह इतीति । इति पूर्वो तेनात्मदेहभेदेनात्मनो देहात्पृथक्करणेन देहस्यैव प्राप्त चार्वाकमतेनात्मत्वं तन्निवारितं इदानीमुत्तरग्रंथेन तस्य देहभेदस्यासत्त्वमात्मसत्तातिरिक्तसत्ताराहित्यं स्फुटं स्पष्टं यथास्यात्तथा हीतिप्रसिद्धमुच्यते ॥ ४२ ॥
भा. टी. इस प्रकार नैच्यायिकोंने आत्माका और देहका भेद दिखाकर देहको आत्मत्व निवारण किया है । सो अब देह आत्माके भेद असत्ता स्पष्ट दिखामैं है ॥ ४२ ॥ . चैतन्यस्यैकरूपत्वा दो युक्तोन कहि चित् ॥जीवत्वं च मृषा ज्ञेयंरज्जौ सर्प; ग्रहो यथा ॥ ४३ ॥ .
सं. टी. तदेवाह चैतन्यस्येति।चैतन्यस्य सर्वभूतभीतिकप्रपंचाधिष्ठानप्रकाशस्य घटःप्रकाशते पटः प्रकाशते इत्यादिष्वेकरूपत्वादेकाकारत्वादेतोः कहिचित्क

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