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अपरोक्षाऽनुभूतिः। • भा. टी. सतोगुण रजोगुण तमोगुणसे बने हुए जाग्रत स्वम सुषुप्ति तीनो ऊपर कहे हुए प्रकारसे मिथ्या होयहैं इन तीनों अवस्थाका साक्षी गुणातीत अर्थात गुणरहित चिन्मय अर्थात चैतन्य स्वरूप सत्य है ।।.५८ ॥ . . यदन्मृदि घटभ्रांति शुक्तौ वा रज
तस्थितिम् ॥ तद्ब्रह्मणिजीवत्वं वीक्ष्यमाणे न पश्यति॥ ५९॥ ।
सं. टी. नन्ववस्थात्रयं मिथ्याभवतु जीवस्तु सत्यः स्यादित्याशंक्य सदृष्टांतमुत्तरमाह यदादिति ब्रह्माणि । वीक्ष्यमाणे आत्मत्वेन साक्षात्कृते सति जीवत्वं न-पश्यतीत्यन्वयः अन्यत्स्पष्टमेव ।। ६९ ॥ .. ___ भा. टी. यदि आत्मामें गुणत्रय मिथ्या है तौ जीवही सत्य हो वहां कहै है । जिस प्रकार मृत्तिका घटकी शान्ति है परन्त घट नष्ट होनेपर मृत्तिकाही दृष्टिगोचर होयहै और जैसे शक्तिमें चांदीकी भान्ति होय है और जब समीपजाके देखे है तों. सीपी होयहै इसी प्रकार जबतक आत्माका ज्ञान नहीं होय तब जीव है ऐसी प्रतीति होय है परंतु ब्रह्मका साक्षात्कार होनेसे जीवको नहीं देखें है ॥ ५९ ॥
यथाम्रदि घटोनामकनकेकुण्डलाभिधा॥ शुक्तौ हिरजतख्यातिजीवशब्द: स्तथा परे॥६०॥
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