Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 59
________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता । (५३ ) पात्ररूपेण ताम्रहि ब्रह्मांडौघैस्तथात्मता॥६३॥ सं. टी. यथा तरंगेति सुगमम् ॥ ६३॥ भा. टी. जिसप्रकार जलही तरङ्गरूप देखनेमें आवैहै और ताम्रही पात्राकार देखनेमें आवैहै इसीप्रकार आत्माही ब्रह्माण्डाकार होकर दृष्टिगोचर होयहै ॥ ६३ ॥ घटनाम्नायथा पृथ्वी पटनानाहि तंतवाजगन्नानाचिदामाति ज्ञेयं तत्तद भावतः॥६४॥ सं. टी. किंच घटेति तत्र पादत्रयं स्पष्टं ननु किमनेन मिथ्यात्ववासनादाढनेत्यत आह ज्ञेयमिति तदभावतो नामाभावतस्तद्ब्रह्म ज्ञेयम् “वाचारंभणं विकारो . नामधेयं मृत्तिकेत्येव सत्यम्" इत्यादिश्रुतेः ॥ ६ ॥ भा. टी. जैसे संसार मृत्तिका घटनाम करकै प्रसिद्ध होय है और तन्तु पटनाम करकै प्रसिद्ध होयहै इसीप्रकार जीव नाम करकै संसारमें चिद्रूप आत्मा प्रसिद्ध होयहै सो मिथ्या है क्योंकि संसारके व्यवहारके वास्ते नाम संकेत मात्र होयहै ॥ ६४ ॥ सापि व्यवहारस्तु ब्रह्मणा क्रियतेज नैः ॥अज्ञानान्न विजानति मृदेव हिप । टादिकम् ॥६५॥

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