Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 101
________________ संस्कृतटीका-मापाटीकासाहिता। . (९५) भा. टी. जब कार्य कारणभाव निवृत्तहोय है तब शुद्ध मन और वाणीसे अगोचर जो ब्रह्मवस्तु है सोई रहे है जैसे घटका नाश होने पर मृत्तिका ही बाकी रहे है ऐसा ही बारम्बार समझना ॥ १३६ ॥ अनेनैव प्रकारेण वृत्तिर्ब्रह्मात्मिकाभवेत् ॥ उदेति शुद्धचित्तानां वृत्तिज्ञानततः परम् ॥ १३७॥ सं. टी. न केवलमयं विचारो ज्ञानसाधनमेवापितु ध्यानसाधनमपीत्याह अनेनेति अनेनैवप्रकारेण शुद्धचित्तानां वृत्तिज्ञानम् उदेति ततः परं ब्रह्मात्मिका वृत्तिभवेदिति योजना पदानामर्थस्तु स्फुट एव ॥ १३७ ॥ भा. टी. इस प्रकार ब्रह्मात्मिका वृत्तिहोय है तदनन्तर शुद्ध चित्तहोनेसे वृत्तिके ज्ञानका उदय होय है ॥ १३७ ॥ कारणं व्यतिरेकेण पुमानादौ विलोकयेत ॥ अन्वयेनपुनस्तद्धि कार्ये नित्यं प्रपश्यति ॥ १३८॥ "सं.टी. तमेव विचारं विशदयति द्वाभ्यां कारणमिति आदौ प्रथमं कारणं व्यतिरेकेण कार्यविरहेण विचारयेत् पुनस्तत् कारणमन्वयेनानुवृत्त्या कार्येपि नित्यं प्रपश्यतीति ।।१३८॥ भा. टी. मुमुक्षु पुरुष पहले कारणके विना कार्यकी

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