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— संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता। (५१) सं. टी. अज्ञनावस्थायां प्रतीयमानो यो जांवब्रह्मभेदः स नाममात्र इति बहुदृष्टतिराह यथेति रजतस्य ख्यातिराख्या नामेति यावत् परे परब्रह्माण जीवशब्दस्तथा शेष स्पष्टम् ॥६॥
भा. टी. अज्ञान अवस्थामें जो जीव ब्रह्मका भेद भासै है सो केवल नाममात्र होय है वस्तुतः मृत्तिका होय परन्तु घट ऐसा नाममात्र होयहै और सुवर्ण होयहै परन्तु कटक कुण्डल ऐसा नाममात्र होयहै सीपी होयहै परन्तु मायावश पुरुष रजत कहने लगे है इसी प्रकार वस्तुतः ब्रह्म होय है तबभी ब्रह्ममें जीवसंज्ञा होय है सो नाममात्र है वस्तुतः मिथ्या है ॥ ६० ॥
यथैवव्योस्निनीलत्वं यथानीरं मरुस्थ ले॥-पुरुषत्वं यथास्थाणौ तद्विश्वं चिदात्मनि ॥६१ ॥
सं. टी. न केवलं जीव एव नाममात्रः किंतु सवैविश्वमपि ब्रह्माणि नाममात्रमित्यनेकदृष्टांतराह यथैवेति स्पष्टम् ॥ ६॥
भा. टी. केवल जीवही नाममात्र नहींहै किन्तु सम्पूर्ण विश्वही नाममात्र है जैसे आकाशमें वस्तुतः कुछ नहीं है परन्तु नीलापन मालूम होयहै और जैसे मारवाडकी भूमिमें वस्तुतः जल नहीं है परन्तु चान्तीसे जल मालूम होय है और जैसे अन्धकार दोषसे रात्रिमें ढूंठ पुरुष मालूम होय है परन्तु वस्तुतः