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अपरोक्षानुभूतिः ।
तन्तुओंको पट माने है दिसी प्रकार आत्माको देहरूप निर्णय
करै है ॥ ७१ ॥
कनकं कुंडलत्वेन तरंगत्वेन वैजलम् ॥ विनिर्णीता• ॥ ७२ ॥
सं. टी. कनकमिति ॥ ७२ ॥
भा. टी. जिस प्रकार अज्ञानी पुरुष सुवर्णके कुंडल माने है और जलको तरङ्गरूप मान है तिसी प्रकार आत्माको देहरूप निर्णय करै है ॥ ७२ ॥
पुरुषत्वेयथास्थाणुर्जलत्वेनमरीचिका ॥ विनिर्णीता० ॥ ७३ ॥ सं. टी. पुरुषत्व इति ॥ ७३ ॥
भा. टी. जिसप्रकार अज्ञानी पुरुष शाखाहीन वृक्ष अर्थात् ठूंठवृक्षको पुरुषरूप मान है और मरुमरीचिकाको जलरूप मानै है तिसी प्रकार आत्माको देह रूप निर्णय करे है ॥ ७३ ॥ गृहत्वेनैव काष्ठानिखङ्गत्वेनैव लोहता ॥ विनिर्णीता० ॥ ७४ ॥
सं. टी. गृहत्वेनेति सर्पत्वेनेत्यादि पंचानामप्येतेषां श्लोकानामर्थः स्फुटतर एवास्त्यतो न व्याख्यानं कृतम् ॥ ७४ ॥