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संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता।, (९१) उसको घटादि पदार्थोंका प्रकाश होयहै जिसके चित्तकी वृत्ति शून्यताको आश्रय करे है उसका चित्त शून्यमय होयहै इसीप्रकार जिसके चित्तकी वृत्ति चैतन्यस्वरूप ब्रह्ममें जाय है उसको पूर्ण ब्रह्मका लाभ होयहै इससे पुरुषको जिसनकार पूर्ण ब्रह्मत्वका लाभ होप उसतरहका ग्यासकर लाभ उठाना योग्य है ।। १२९ ॥
येहि वृतिं जहत्येनां ब्रह्माख्यां पावनी पराम् ॥ तेतुवृथैवजीवंति पशुभिश्च समानराः॥१३०॥
सं. टी. इदानी ब्रह्ममयी वृत्ति स्तोतुं तवृत्तित्यागपरानिंदति यहीति येएनां ब्रह्माख्यां वृत्तिं जहति त्यजंति तेतु वृथैवजीवंतीत्यन्वयः स्पष्टमन्यत् ॥ १३० ॥ __ भा. टी. जो पुरुष परमपवित्र और सबसे उत्कृष्ट ब्रह्मवृत्तिका परित्याग करे हैं वह मनुष्य इस संसारमें वृथाही पशुओंकी समान जीवन धारण करे हैं ॥ १३० ॥
येहि वृत्ति विजानति ज्ञात्वापि वर्धयंति ये॥ वै सत्पुरुषाधन्याबंद्यास्ते. भुवनत्रये ॥ १३१॥ सं. टी. संप्रति तामेव वृत्ति विवयितुं प्रवृत्तिपरान्सत्पुरुषान् स्तोति येहीति स्पष्टम् ॥ १३१ ।।
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