Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ (७२) अपरोक्षाऽनुभूतिः । नानुध्यायान्नांचंतयेत् तर्हि तान् यात्किनेत्याहवाचइति ततशास्त्रपठनं वाचोविग्लापनं विशेषेणश्रमकर होति सर्वानुभवसिद्धमित्यलंपल्लवितेन ॥ ९९ ॥ भा. टी. यदि अनभिज्ञ अर्थात अज्ञानी पुरुष बलात्कार करके कर्म अर्थात प्रारब्धको स्वीकार करै तब उनको दो. दोष आदेंगे एक तो मोक्षका अभाव दूसरे मोक्ष न होनसे ज्ञानका अभाव और इस प्रकार वेदान्त मत (अद्वैतवाद )की भी हानिहै इस हेतु प्रारब्धरूप द्वैत स्वीकार करना पड़ेगा अद्वैतवाद तौ होही नहीं सबैगा अब जिस श्रुतिसे ज्ञानलाभ होय ऐसी श्रुति कहनी होगी यदि श्रुति नहीं कहोगे तो और कोई ज्ञानलाभका उपाय नहीं है ॥ ९९ ॥ त्रिपंचांगान्यथोवक्ष्ये पूर्वोक्तस्यहि ल. ब्धये ॥ तैश्चसवैः सदाकार्य निदिध्यासनमेवतु ॥ १० ॥ सं. टी. तदेवमेताक्ता ग्रंथसंदर्भेण मुख्याधिकारिणो वैराग्यादिसाधनचतुष्टयपूर्वकं वेदांतवाक्यविचारएवप्रत्यगभिन्नब्रह्मापरोक्षज्ञानद्वारा मुख्यं मोक्षकारणमित्यभिहितं इदानीमसकृद्विचार्यापि बुद्धिमायविषयासत्यादिप्रतिबंधनापरोक्षज्ञानं यस्य नजायते तस्य मंदाधिकारिणो निर्गुणब्रह्मोपासतमेव मुख्य साधनमित्यभिः

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108