Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 61
________________ संस्कृतटीका - भाषाटीका सहिता । (५५) केन मृत्पिंडेन सर्वमृन्मयं विज्ञातं स्यात्" इत्यादिश्रुतिः युक्तिस्तु कार्यकारणयोरन्यत्वे एककारणज्ञानात्सर्वकार्यज्ञानं न स्यादित्यादि । सुगममन्यत् || ६६ || भा. टी. जैसे सदा घट और मृत्तिकाका कार्य्यकारण भाव देखने में आवैहै तिसी प्रकार श्रुतियोंसे और युक्तियों से प्रपञ्च अर्थात् जगत् और ब्रह्मका कार्य कारण भांव जाना जायहै ॥ ६६ ॥ गृह्यमाणे घटेयद्वन्मृत्तिकायातिवैवलात् ॥ वीक्ष्यमाणेप्रपंचेपि ब्रह्मवाभाति भासुरम् ॥ ६७ ॥ सं. टी. कार्यकारणयोरनन्यत्वमेव दृष्टांतेन स्पष्टयति गृह्यमाण इति भासुरं प्रमाणनिरपेक्षतयैव भासनशीलं स्पष्टमन्यत् ॥ ६७ ॥ भा. टी. जैसे घटके विषय में विचार करते करते अन्तमें मृत्तिकाही निश्चय होय है इसीप्रकार इस संसारके विषयमें विचार करते करते विना प्रमाणोंके प्रकाशवान् ब्रह्मही प्रतति होय है ।। ६७ ॥ • सदैवात्मा विशुद्धस्ति शुद्धो भाति वैः सदा ॥ यथैव द्विविधारज्जुर्ज्ञानिनो ऽज्ञानिनोऽनिशं ॥ ६८ ॥ सं. टी. ननु ब्रह्मणि भासमाने प्रपंचो न भासेतेत्या -

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