Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 55
________________ .. संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता। (४९) सं. टी. नन्वयंलोक एव तत्कारणे सति कथं शोकायभाव उच्यत इत्याशंक्य सदृष्टांतमाह अनुभूत इति स्पष्टम् ॥ ५६ ॥ दृष्टांतं विवृण्वन्तुक्तन्यायमन्यत्राप्यतिदिशति स्वप्नइति अलीको मिथ्या इयं स्वप्नजागरणे लये सुषुप्तौ शेषं स्पष्टम् ॥ ५७॥ ___ भा. टी. जिस प्रकार स्वप्नावस्थामें स्वनों देखाहुआ पदार्थ सम्पूर्ण सत्स्वरूप मालूम पडै है स्वमसे दूसरेक्षणमें जगते ही सब असत् स्वरूप हो जाय है इसी प्रकार इस संसारका व्यवहार सत्य मालूम होयहै और असत् स्वरूप होयहै जाग्रत् अवस्था में स्वम मिथ्या मालूम होयहै स्वमा अवस्थामें जायत मिथ्या मालूम होय है और सुषुप्ति अवस्थामें स्वम जाग्रत् . दोनों मिथ्या होयहैं इसी प्रकार स्वम और जाग्रत अवस्थामें सुषुप्ति मिथ्या प्रतीत होयहै ॥ ५६॥ ५७॥ त्रयमेवं भवेन्मिथ्या गुणत्रयविनिर्मितम्॥अस्य द्रष्टा गुणातीतोनित्योह्येकश्चिदात्मकः॥५८॥ सं. टी. उक्तमुपसंहरन्फलितमाह त्रयमिति त्रयं. जायदाद्यवस्थात्रयमेव मुक्तपरस्परव्यभिचारेण मिथ्या मिथ्यात्वे हेतुः गुणेति गुणत्रयविनिर्मितं मायाकल्पितमित्यर्थः तर्हि किंसत्यमतआह अस्येति अस्यअवस्था त्रयस्यशेषस्पष्टम् ॥ ५८॥ ३

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