Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas
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(४८) अपरोक्षाऽनुभूतिः सप्तम्यर्थे तस्मिन्नवस्थाविशेपे वै निश्चयेन मोहो भ्रमो नभवेच्च पुनः शोको व्याकुलतापि न भवेत् उभयत्र हेतुः अद्वितीयतः तत्कारणाभावादित्यर्थः॥५४॥ ___ भा. टी. जिस अवस्थामैं पुरुष. सर्व प्रपंचको आत्मरूप मानै है उस अवस्थामें मनुष्यको अद्वैतज्ञान होनेसे शोक मोह नहीं होयहै ॥ ५४ ॥
अयमात्मा हि ब्रह्मैव सर्वात्मकतया स्थितः॥ इति निर्धारितं श्रुत्याबृहदा
रण्यसंस्थया ॥ ५५॥ ' सं. टी.शोककारणद्वैताभावे प्रमाणमाह अयमिति " सवा अयमात्मा ब्रह्म विज्ञानमयः” इत्यादिरूपये त्यर्थः। शेषस्पष्टम् ॥ ६॥
भा. टी. "सवा अयमात्मा ब्रह्मविज्ञानमयः" परमात्मस्वरूप ब्रह्मही सर्वात्मकरूप स्थितहै ऐसा बृहदारण्य उपनिषद्की श्रुतिने निश्चय किया है ॥ ५५ ॥
अनुभूतोऽप्ययंलोकोव्यवहारक्षमोऽपि सन् ॥ असद्रूपो यथास्वप्न उत्तरक्षणबाधतः॥५६॥ स्वप्नोजागरणेऽलीकः . . स्वप्नेपि जागरो नहि ॥ द्वयमेव लये नास्ति लयोपि झुभयोन च ॥५७॥

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