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अपरोक्षाऽनुभूतिः। भा.टी. आत्मा अन्दर स्थित है और प्रेरणा करने वाला . • है देह बाहर और प्ररित है तवभी संसार बन्धनमें फंसे हुए
अज्ञानी पुरुप देह और आत्मांकी समता कर व्यवहार करेंहैं इससे अधिक और क्या अज्ञान होगा ॥ १८॥ .
आत्मा ज्ञानमयः पुण्यो देहो मांसमयोऽशुचिः॥तयोरैक्यं प्रपश्यन्तिकि
मज्ञानमतः परम् ॥१९॥ . सं.टी. अन्यदपि वैलक्षण्यमाह आत्मति आत्मा ज्ञानमयः प्रकाशरूपोऽतएव पुण्यः शुद्ध देहस्तु मांप्लादिविकारखानतएवाऽशुचिः एतेनात्मनः स्थूलदेहादपि वैलक्षण्यमुक्तं भवति तयोरेक्यामित्यादि पूर्ववत् ॥१९॥
भा. टी. आत्मा ज्ञानमय है पवित्र है और देह मांस रुधिर अस्थि चर्बी इत्यादिकोंसे बनाहुआ है इसी. कारण अपवित्र है तबभी संसार बंधनमें फंसे हुए अज्ञानी पुरुष देह और आत्माकी समताकर व्यवहार करें हैं इससे अधिक और क्या अज्ञान होगा ॥ १९॥
आत्मा प्रकाशकास्वच्छो देहस्तामस उच्यते ॥ तयोरक्यं प्रपश्यन्ति किमज्ञानमतःपरम् ॥२०॥
सं. टी. वैलक्षण्यांतरमाह आत्मेति आत्मा स्वयंप्रकाशः सन् सूर्यादिवदन्यसर्वप्रकाशकोऽतएवस्वच्छः