Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 38
________________ (३२) अपरोक्षानुभूतिः। सं.टी.तदेवातिवलक्षण्यं दर्शयति अहमिति । अहमहंशब्दप्रत्ययालंबन आत्मा द्रट्टतया शब्दादिविपयप्रकाशकतया सिद्धः शब्दंशृणोमीत्यादिव्यवहारेण प्रसिद्धः देहस्तु दृश्यतया शब्दादिवत्प्रकाश्यतया स्थितः तत्र हेतुमाह समेति ममायं देह इति घटादिवत्स्वीयसंबंधितया निर्देशात् व्यवहारात् एवमुभयोलक्षण्ये सति कथं देहकः पुमान स्यादिति व्याख्यातार्थश्चतुर्थपादः एवमपि बोदव्यम् ॥३२॥ __भा. टी. यह मेरा है इस प्रकार निर्देश करनेसे आत्मा द्रष्टा (देखने वाला) देह दृश्य ( देखने लायक) है.इसप्रकार प्रतीत होयहै । फिर आत्मा किसपकार देहमय हो सकै है ।। ३२ ॥ अहं विकारहीनस्तु देहो नित्यं विकार वान्॥इतिप्रतीयतेसाक्षात्कथं०॥३३॥ . सं.टी. पुनर्वैलक्षण्यांतरमाह अहमिति अहं व्याख्या तार्थः विकारहीनः जायतेस्तीत्यादिषड्विकारहीनः तुवैलक्षण्ये देहो नित्यं सर्वकालं विकारवान् अत्रकिंप्रमाणमत आह इतीति इति साक्षात् प्रत्यक्षप्रमाणेन प्रतीयते अनुभूयते एवं सतिकथं स्यादेहकः पुमानिति ॥ ३३॥ ___ भा. टी. आत्मा विकाररहित है और देह सदा विकारवान है ऐसा साक्षात् प्रतीत होय है फिर किस प्रकार आत्मा देहमय होसकै है ॥ ३३ ॥

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