Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas
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(३०) अपरोक्षानुभूतिः। . ब्रह्मरूप निर्णय किये हुए देहातीत आत्माको शून्य ज्ञान करै है ॥ २९ ॥
स्वात्मानं शृणु मूर्ख त्वं श्रुत्या युक्त्या च पूरुषम् ॥ देहातीतं सदाकार सुदु दर्श अवादृशैः॥३०॥ सं.टी. ननुशून्यवादिन एवाभावापत्तेः शून्यं मास्तु परंत्वात्मनो देहातीतत्वे प्रमाणामावादेह एवात्मा स्यादित्याशंक्याहं स्वात्मानमिति । भो मूर्ख देहात्मवादिन चार्वाक त्वं स्वात्मनं स्वकीयमात्मानं पुरुष देहातीतं देहातिरिक्त श्रुत्या "तस्माद्वा एतस्मादन्नरसमयाहन्यांतर आत्मा"इत्यादिकया पुनयुक्त्याच एकस्मिन्क
कर्मविरोधइत्यादिरूपया शृणु अवधारय देहातीतत्वे किमाकार आत्मेत्यत आह सदाकारमिति । सदाकारमस्तीत्येतन्मात्रव्यवहारकारणभूत आकारो यस्य तं एवंविधोस्ति चेत्कुतोन दृश्यत इत्यत आह सुदुर्दर्शमिति भवादृशैः श्रुत्याचार्य श्रद्धाशून्यैः सुदुर्दर्श सर्वथा दर्शनायोग्यं तस्यादृष्टरूपत्वादेवेत्यर्थः यद्वा पूर्वश्लोकोक्तद्वितीयापेक्षया देहात्मवादिनः समाधानार्थीयं श्लोकः स्वात्मानामिति ॥ ३०॥ ___ भा. टी. युक्तियों करकै और श्रुतियों करकै आत्माको देहातीत निर्णय तौ कर । हे मूढ ! आत्मा तौ सदाकारहै

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