Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 41
________________ संस्कृतीका-भाषार्टीकासहिता। (३५) तत्रैवचसमाख्यातः स्वयंज्योतिर्हि पूरुषः॥जडः परप्रकाश्योसौ कथं०३७॥ सं. टी.तत्रैवान्यप्रकारणापि देहात्मनोवैलक्षण्यं निरूपितमित्याह तत्रैवेति । तत्रैव बृहदारण्यक एवेत्यर्थः अत्रायं पुरुषः स्वयंज्योतिर्भवतीति श्रुत्या स्वयंज्योतिः पुरुषः समाख्यातः हीति विद्वत्प्रसिद्धिं द्योतयति असौ घटादिवदृश्योऽत एव परप्रकाश्यस्तत एव जडो देहकः कथं पुमान् स्यादिति व्याख्यातम् ॥३७॥ __ भा. टी. "पूरुषोज्योतिर्मयः" पुरुष स्वयंप्रकाश ज्योतिस्वरूपहै यह श्रुति उसी बृहदारण्यक उपनिषद्में लिखीहै . . इससे आत्मा तौ ज्योतिःस्वरूपहै और देह जड़है घटादिकोंकी तरह परप्रकाश्यहै फिर किसमकार आत्मा देहमय हो सकै है ॥ ३७॥ प्राक्तोतकर्मकांडेन ह्यात्मा देहाद्वि• लक्षणः॥ नित्यश्चतत्फलं भुक्ते देहपा तादनंतरम् ॥३८॥ सं.टी.अथास्तामिदं ज्ञानकांडं कर्मकांडेपिदेशात्मनो भैद एवनिर्णीत इत्याप्रोक्तइति।हियस्मात्कर्मकांडेनापि " यावजीवमग्निहोत्रं जुहुयात् " इत्यादिरूपेण कर्मप्रतिपादकेन वेदभागनेत्यर्थः आत्मा देहाद्विलक्षणः प्रोक्तः कथमित्यतआह नित्य इति नित्यत्वं च कुतइत्यतआह

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