Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas
View full book text
________________
(१८)
अपरोक्षाऽनुभूतिः। सदव्ययः संश्वासावव्ययश्चविनाशापायोपलक्षितसर्वविकारशून्य इत्यर्थः यस्मादेवंभूतोऽहं तत्तस्मादहमईप्रत्ययवेद्यस्तत्सत्यज्ञानादिलक्षणं ब्रह्म अत्र संदेहो नास्तीत्यर्थः सोयमीहशो विचारइति ॥ १६॥ __ भा. टी. अहम् शब्द करके प्रतिपाय अर्थात् आत्मा अद्वितीय अतिसूक्ष्म जाननेवाला सर्वसाक्षी नित्य और अविनाशी ब्रह्म है इसमें कोई सन्देह नहीं है इस प्रकार जो तत्व निर्णय है सो विचार कहावे है ॥ १६ ॥
आत्मा विनिष्कलो ह्येको देहो बहु भिरावृतः ॥ तयोरैक्यं प्रपश्यन्ति किमज्ञानमतः परम् ॥ १७ ॥
सं. टी. एतदेव जीवात्मक्यज्ञानप्रदर्शनेन गुढयति आत्मेत्यादिपंचभिः यतोऽप्रत्ययवेद्य आत्मा अतीत संततभावेन जायदादिसर्वावस्थास्वनुवर्तत इत्यत्मा: अवस्थात्रयभावाभावसाक्षित्वेन सत्यज्ञानादिस्वरूप इत्यर्थः स त्वंपदलक्ष्यार्थीपि तत्पदलक्ष्यार्थ एव विनिष्कलो विशेषण निर्गतकलो निरवयवइत्यर्थः अन्यथा सावयवत्वे घटादिवहिनाशित्वापत्तिरिति भावः अवहेतुः एक: हीति “एकमेवाद्वितीयम्" इत्यादि श्रुतिप्रसिद्धिं द्योतयति ननु तथा लिंगदेहोप्यस्तीति चेन्नेत्याह देह शति देहो लिंगदेहः सूक्ष्मशरीरमिति यावत् सबढभिः

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108