Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 25
________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता। (१९) . कलाभिः श्रोत्रादिबुद्धयंताभिः सप्तदशभिरावृत आच्छादितस्तत्संघात इत्यर्थः अतएव लिंगदेहस्य निरवयवत्वाद्यभावात् ज्ञानेन तत्कारणाऽज्ञाननिवृत्ती निवृत्तिरन्यथाऽनिर्मोक्षप्रसंग इतिभावः एवमतिवैलक्षण्ये सत्यपि तयोरात्मदेहयोः प्रकाशतमसोरिवैक्यमैकात्म्यं प्रपश्यति तार्किकादयइत्यर्थः अतो विपरीतदर्शनात्परमन्यदज्ञानं किमस्ति । एतदेवाज्ञानमित्यर्थः विपर्ययरूपकार्यान्यथानुपपत्त्या तत्कारणं मूलाऽज्ञानं. कल्प्यत इतिभावः ॥ १७॥ . भा. टी. आत्मा विनिष्कल अर्थात् अवयवहीनहै इसी कारण एक है और देह बहुत अवयवोंसे बना है तबभी संसार बन्धनमें फंसेहुए पुरुष आत्मा और देहकी ऐक्यताकर व्यवहार करते हैं इससे अधिक और क्या अज्ञान होगा ॥ १७॥ आत्मा नियामकश्चान्तदेहो बाटो नियम्यकः॥ तयोरैक्यं प्रपश्यन्ति किमज्ञानमतः परम् ॥१८॥ सं.टी. पुनर्वैलक्षण्यमाह आत्मेति आत्मा नियामको नियंता च पुनरंतः पंचकोशांतरः देहस्तु नियम्यः सन् बाह्यः तयोरैक्यमित्युत्तराई व्याख्यातं एवमपि ज्ञेयम् ॥ १८॥ .

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