Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 29
________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिता। (२३:) किंतु दीपादिरूपस्याग्न्यादिप्रकाशस्य प्रकाशिका तदभावे चांधकारस्य प्रकाशिका उत्पत्तिनाशरहिता च सदा सर्वत्र पूर्णवास्ति यता इयमात्मदीप्तिरग्न्यादिदीप्तिसहशी न कुतः यतः कारणानिशि रात्रावांध्यमधकारोभवत्यतद्विलक्षणाऽऽत्मदीतिज्ञेया ययात्मदीप्तिरग्न्यादिदीप्तिसहशीभवेत्ताग्न्यादिदीप्त्या यथाधकारस्य नाशोभवति तथात्मदीप्त्याऽप्यंधकारस्य ना शः स्यात् परंत्वात्मनः सत्ताप्रकाशाभ्यां सर्वत्र सर्वदा विद्यमानत्वेऽप्यंधकारस्य नाशो नभवत्यतआत्मदीप्तिरग्न्यादिदीप्तिसदृशी न किंतु इयमग्न्यादिदीप्तिर्भातीद मांध्यंभातीत्यायाकारणाऽग्न्यादिदीतेरांध्यस्य चान्यस्य सर्वस्य च प्रकाशिका चाविरोधिन्यात्सदीप्तिः स्वप्रकाशवाभ्युपेतव्या सर्वैरात्मज्ञानारूढेरित्यर्थः । तस्मादग्न्यादिदीप्तीनामपि दीपिकाऽन्यसाधननिरपेक्षायादीप्तिः स आत्मप्रकाश इतिभावः ।। २२॥ भा. टी. जिस प्रकार घटपटादि पदार्थ प्रकाश होय हैं तिसी प्रकार आत्माका प्रकाश होयहै सूर्थ्य चन्द्र अमिके प्रकाशकी तरह आत्माका प्रकाशविकारको नहीं प्राप्त होय है क्योंकि जब रात्रिमें सूर्यादिकका प्रकाश नहीं होयहै तब अन्धकार होय है इससे जानाजायहै कि अमि आदिका प्रकाश विकारको प्राप्त होय है किन्तु आत्माका प्रकाशक

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