Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 27
________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासहिंता। . (२१) प्रकाश्यगुणदोषसंबंधशून्यइत्यर्थः 'असंगोमयं पुरुषः" इतिश्रुतेः देहस्तु तामसो घटादिवत्प्रकाश्यत्वेन जडः तयोरैक्यामत्यदि पूर्ववत् ॥ २० ॥ __ भा. टी. आत्मा सबका प्रकाशक ज्योतिःस्वरूपहै और स्वच्छ है ( अर्थात् जिसमें रजोगुण सतोगुण तमोगुणरूप सृष्टि मरु मरीचिका की तरह मालुम होय वास्तवमें आत्मा निर्मलहै ) और देह सदा तमोगुण करके युक्त रहेहै तबभी संसारी पुरुष देह आत्माकी समता कर व्यवहार करें हैं इससे अधिक और क्या अज्ञान होगा ॥ २० ॥ आत्मा नित्यो हि सद्रूपो देहोऽनित्योहसन्मय ॥ तयोरैक्यं प्रपश्यन्ति किमज्ञानमतःपरम् ॥२१॥ सं. टी. अत्र सर्वत्रपौनरुत्यनाशंकनीयमात्मनोऽलौ किकत्वेनात्यंतदुर्बोधत्वादेव बहुधा वैलक्षण्यं प्रदश्यते परमकारुणिकै श्रीमदाचार्यः आत्मेति आत्मा नित्यो ध्वंसाप्रतियोगी तत्रहेतुः हि यस्मात्सद्रूपः अबाध्यस्वरूपन्देहस्तु ध्वंसप्रतियोगी अत्रापि हेतुःहियस्मादसन्मयोऽनित्यः विकारत्वेन बाधयोग्यइत्यर्थः यस्मादेवमास्मदेहयोरत्यतवलक्षण्यं तस्मात्तयोरक्यदर्शनं केवलमज्ञानमिति ॥ २३॥

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