Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 30
________________ (२४) अपरोक्षानुभूतिः । भी विकारको नहीं प्राप्त होयहै अर्थात् आत्माका प्रकाश सदा सब जगह रहेहै ॥ २२॥ देहोऽहमित्ययं सूढो धृत्वातिष्ठत्यहो जनः ॥ ममायमित्यपि ज्ञात्वा घटद्रष्टेव सर्वदा ॥ २३ ॥ सं. टी. तदेवं प्रकाश्य प्रकाशकत्वादिलक्षणवैलक्षण्येसत्यपि आत्मानात्माभेददार्शनमुपसंहरन्नुभयोभदं स्पष्टयति देहइति अहमहंशब्दप्रत्ययालंबनः प्रत्यगा त्माऽयमिदंतयानिर्दिश्यमानो. घटादिवत्प्रत्यक्षतयाहः श्यमानोदेहास्मीतिउभयोष्टदृश्ययोरैक्यकृत्वा सूढः स्वाज्ञानकार्यविपर्ययमोहव्याप्तोजनस्तिष्ठति कृतकृत्य बुद्धया नियापारोभवतीत्यर्थः एतददो महदज्ञान मितिभावः किंकृत्वापीत्यत आई ममेति मम मत्संबंधी अयं देह इति सामान्यतो भेदं ज्ञात्वापि अतएवाश्चर्यमिति तात्पर्य कइव, सर्वदा घटद्रष्टेव यथा सर्वकाले घटद्रष्टा पुरुषो ममायं घट इति जानाति नत्व घट इति कदचिदपि जानातीत्यर्थः ॥२३॥ ___ भा. टी. मनुष्यके पास एक घडा होयहै तब 'मेराघडा है' ऐसा व्यवहार करै है मैं घट हूं ऐसा व्यवहार नहीं करै किन्तु यह देह मेरा है मैं हूं ऐसा संसारी पुरुष ज्ञान करैहै परन्तु वास्तवमें अज्ञानहै ॥ २३ ॥

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