Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 22
________________ (१६) अपरोक्षानुभूतिः। त्यादिलक्षणोंतःकरणपरिणामः कारणानुकूलव्यापार 'वान् का शेष पूवोक्तम् ॥ १४ ॥ '. भा. टी. समस्त जगत् अज्ञानसे उत्पन्न होयहै ( अज्ञान ये है इस सब संसारकी कल्पना होयहै ) ज्ञान होयहै तब नष्टप्राय मालूम होयहै ( अर्थात ज्ञानका प्रकाश होनेसे स्वरूप · जानाजायहै इसीकारण ज्ञानावस्थामें इस पुरुपको सङ्कल्प विकल्प नहीं होयह ) नानाप्रकारका जो सङ्कल्पहै सो इस संसारका कर्ता है इस प्रकार जो चिन्तनाहै सो विचारहै।।१४॥ एतयोर्यदुपादानमेकं सूक्ष्मं सदव्ययम्॥ यथव मृद्धटादीनां विचारःसो- .. · यमीदृशः॥१५॥ सं. टी. अथोपादानं किमस्तीत्यस्य निर्णयमाह एतयोरिति एतयोरज्ञानसंकल्पयोर्यदुपादानं उत्पत्तिस्थितिनाशाय कारणं तत्तु सत्कालत्रयाबाध्यं ब्रह्मैव नान्यदित्यर्थः अत एवाधिष्ठानज्ञाननिर्वाऽज्ञानकायत्वेन मिथ्याभूतमपि जगत् यावज्ज्ञानोदयं रज्जुसदिवत् संसारभयव्यवहारक्षमं भवदितिभावः ब्राह्मणःस वेहेतुः अव्ययमिति अव्ययमपक्षयरहितं अनेनैतत्पूर्वभूताअपि जन्मादिविकारा निरस्ताः नाशश्च निरस्तः षडभावविकारराहित्ये हेतुः एकं सजातीयादिभेदशून्य

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