Book Title: Aparokshanubhuti
Author(s): Shankaracharya, Vidyaranyamuni
Publisher: Khemraj Krushnadas

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Page 20
________________ (१४) अपरोक्षाऽनुभूतिः। __ भा टी. मैं कोनहूँ ? यह संसार किस प्रकार उत्पन्न हुआ? कौन इस जगतका कर्ता है ? और संसारका उपादान कारण कौन है ? इस प्रकार नानाप्रकारका जो विचार करना है सो 'विचार' है ॥ १२॥ नाहं भूतगणो देहो नाहं चाक्षगणस्त: था ॥ एतद्विलक्षणः कश्चिद्विचारः सोऽयमीहशः॥ १३॥ सं. टी. ननु "चैतन्यविशिष्टःकायापुरुषः" इति बाहस्पत्यसूत्रादेहाकारेण परिणतानि पृथिव्यादिचत्वारि भूतान्येवात्मेति चार्वाका वदति स एव कर्ता सुखीत्यादि सर्वव्यवहारमूलमिति सर्वजनप्रसिद्धौ सत्यामा प्रविषयो विचारो न स्यादित्यतआह नाहमिति अहम हंशब्दप्रत्यालंबनः प्रत्यगात्मा भूतगणो यो देहः स न भवामि तस्य घटादिवश्यत्वादित्यर्थः तहाँद्रियगण स्त्वं स्या इति चार्वाकैकदेशिमतमुत्थाप्य दूषयति नाह मिति च पुनरक्षगणःश्रोत्रादींद्रियसंघातोप्य न भवामि तथेति । पदेन देवदिद्रियगणस्या पि. सूतविकारत्वं दर्शितं स वा एष पुरुषोन्नरसमयः अन्नमयं हि सोम्य मन आपोमयः प्राणस्तेजोमयी वाक्” इत्यादिश्रुतिरुभयत्र प्रमाणं ननु यदि देहदयं त्वं नासि तर्हि शून्यमेवस्या . दित्याशंक्याह एतदिति एतद्विलक्षणः एताभ्यां स्थूल ·

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