Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 17
________________ विधान श्री का दृष्टिकोण रहा, 'काम से पहले नाम का प्रतिबिम्ब केवल विज्ञापन है । मैं उसमें विश्वास नहीं रखता। यह ठीक है कि काम भी सुन्दर हो और नाम भी सुन्दर हो पर इससे भी अधिक ठीक मैं तो यह मानता हूं कि नाम साधारण हो और काम सुन्दर हो। अतःभारतकी प्राचीनतम संस्कृति का द्योतक यही नाम मुझे अधिक पसन्द है।' । ___द्वितीय प्रश्न अवश्य विचारने का था कि अणुव्रत शब्द एक इतना अपरिचित शब्द है कि ग्रामीण और साधारण जनता की तो बात ही क्या शिक्षित वर्ग भी सहसा इसके हार्द को नहीं समझगा। किन्तु यह मानते हुए कि इस प्रकारके अपरिचित और नवीन शब्दोंमें उक्त प्रकार की कमी के साथ-साथ हरएक श्रोता के हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न करने की बहुत बड़ी शक्ति भी हुआ करती है, जो तद्विषयक प्रसार में बड़ी सहायक होती है यही नाम रखा गया। दूसरे, प्रचारकों को भी इस प्रकार के शब्द-माध्यम से जन-सम्पर्क में आनेका अधिक अवसर मिलता है, जो विचारों के प्रसार का केन्द्र बन जाता है। इत्यादि दृष्टिकोणों से संगठन का नाम 'अणुप्रती-संघ' बहुत प्रकार से उपयुक्त मानकर व्यवहृत किया गया है। कितनेक विचारकों की दृष्टि में 'संघ शब्द कुछ अव्यापकता का द्योतक है और समाजादि शब्द अधिक व्यापकता के। पर आचार्य श्री के विचारों से तो व्यापकता और अव्यापकता कार्य-शक्ति में है, न कि शब्द-शक्ति में। ___ अतः इन चर्चाओं को आवश्यकता से अधिक महत्त्व न दे तो इस शब्द-संघटना में हमें निर्दोषता के ही दर्शन होंगे। क-जाति, वर्ण, देश और धर्मका भेदभाव न रखते हुए मानव मात्र को सदाचार की ओर आकृष्ट करना । ख-मनुष्य को अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आदि तत्वों की उपासना का व्रती बनाना। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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