Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 131
________________ आलोचनाके पथपर अणुवती-संघ १२१ पावनेदारोंका मैं पूरा रुपया चुका न सका। लिखा-पढ़ी न होनेसे कानून से उसका देना जरूरी न होता था। उनमेंसे बहुतसे पावनेदार अब जीवित नहीं है । यह सब याद करके मेरा हृदय भार महसूस करता है। उस भारको हलका करनेके लिये शरणार्थियोंकी सहायता करनेके लिये मैं ५ लाख रुपये दान कर रहा हूं। यह दान प्रायश्चित स्वरूप है। मैं इस कामके लिये गठित कमेटीको प्रतिमास २५ हजार रुपया दूंगा। अपने पावनेदारोंकी ओरसे मैं यह दे रहा हूं। शरणार्थियोंको जो सुख अनुभव होगा, उससे पावनेदारोंकी आत्माको शांति मिलेगी। “पहिले व्यापारमें जो भी त्रुटियां हुई हैं उनके लिये सार्वजनिक रूपसे प्रायश्चित करना और पैसा दे देना यह पापके विनाशका प्रधान उपाय है। दिल्लीमें ६०० लखपति व करोड़पति मारवाड़ियोंने जो प्रतिज्ञायें की हैं, उनमें पूर्वकृत पापको स्वीकार नहीं किया गया है। पाप नहीं किया था, तो प्रतिज्ञा लेनेकी भी आवश्यकता नहीं थी। तब उसका मूल्य क्या है ? ___"अवश्य ही यह सत्य नहीं है कि दिल्लीमें जिन मारवाड़ियोंने ये प्रतिज्ञायें ली हैं उनके अतिरिक्त देशमें और को इनके लेनेकी आवश्यकता नहीं है। चोरबाजार और मिलावट करनेवाले मारवाड़ियोंके अलावा और भी तो हैं । यह ठीक है कि व्यापारके क्षेत्रमें मारवाड़ियोंका प्रभाव विशेष है। उनमें यदि ६०० लखपति करोड़पति भी चोरबाजार या मिलावट नहीं करेंगे तो भी व्यापार व्यवसायमें एक सत्ययुग आ जायेगा। ____ “हम आचार्य तुलसी महाराजसे सविनय अनुरोध करना चाहते हैं कि वे कलकत्ता नगरीमें आनेकी कृपा करें। यहांके हजारों ग्वालोंको प्रतिज्ञा ग्रहण करायें कि वे दूधमें पानी नहीं मिलायेंगे। बनावटी दूधमें मसाला मिलाकर उसको सञ्चा दूध बनानेकी कोशिश नहीं करेंगे। एक वर्षके लिये यह प्रतिज्ञा दिलाकर यदि वास्तवमें ही उसको निभाया जायेगा तो उससे मानवजातिके लाखों लोगोंके तन, मन तथा आत्माका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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