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अहिंसा - अणुव्रत
स्पष्टीकरण
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जहाँ बाप दादेके परिवारके अतिरिक्त २०० से अधिक व्यक्ति भोज नार्थ सम्मिलित हों, वह वृहत् जीमनवार माना गया है ।
कोई प्रथा बहुधा किसी अच्छे उद्देश्यको लेकर प्रारम्भ होती है पर आगे जाकर नाना दोषोंसे परिपूर्ण होती हुई समाजके लिये भारतभूत हो जाती है। जीमनवार भी एक ऐसी ही प्रथा है । यह समझ में आता है कि इस प्रथाका उद्गम अवश्य पारस्परिक सहयोग और प्रेमकी अभिवृद्धिके लिये ही हुआ होगा, किन्तु आज वह तत्त्व गौण देखा जाता है और वह जीमनवार केवल आडम्बर और ऐश्वर्यका ही सूचक देखने में आता है। प्रत्येक धनी-मानी व्यक्ति अपने सजातियोंसे बड़ा और शानदार जीमनवार करके समाजमें वाह वाही लेना चाहता है । उन इने-गिने धनी-मानी व्यक्तियोंकी उस प्रवृत्तिका भार सर्वसाधारण पर पड़ता है । उन्हें भी जन्म विवाह - मृत्युसे सम्बन्धित सारे जीमनवार अपनी स्थितिसे बढ़कर करने पड़ते हैं। यदि किसी सिधी प्रकार सम्भव न हो तो कर्ज लेकर करने पड़ते हैं और इसका दुष्परिणाम प्रायः सभी समाजोंमें देखनेको मिलता है । बहुत से व्यक्ति इस प्रथाके दुष्परिणामको समझ भी चुके हैं तब भी सामाजिक श्रृंखलाओंसे जकड़े रहनेके कारण उन्हें भी वाह वाहीकी चक्की में उसी तरह ही पिस जाना पड़ता है।
पहले वृहत् जीमनवारों के लिये बहुत समाजों में पंचायतोंके कुछ नियंत्रण भी रहा करते थे । पर आज वे बंधन भी शिथिल पड़ गये और व्यक्ति-व्यक्ति स्वतन्त्र है । अन्नाभावके इस युगमें इन जीमनवारों पर राजकीय नियंत्रय आये, आश्चर्य है, तब भी जनता का मोह इन मिठाइयों से नहीं टूटा । वह आये प्रसङ्गमें खाने और खिलाने पर डटी रहती है
अब भी
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सुना है, राज्य - नियंत्रित पदार्थोंको
बाद देकर दश दश हजार व्यक्तियों तक के जीमनवार आज की अन्न
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