Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 61
________________ अहिंसा - अणुव्रत विचारकोंने आचार्यवरसे अनुरोध किया कि अणुव्रतोंका प्रसार बंगाल में अपेक्षाकृत अन्य प्रान्तोंसे अधिक सम्भव है, किन्तु मांस सम्बन्धी नियम में कुछ संशोधनकी आवश्यकता है, क्योंकि बंगालियोंके लिये एकाएक सर्वथा मांस परित्याग करना कठिनतम है । प्रसिद्ध विचारक श्री जैनेन्द्रकुमारजीने जब कि हांसी अधिवेशन में सम्मिलित थे एतद् विषयक चर्चाके प्रसङ्गमें सुझाव दिया - "मेरा मत तो यह है कि नियमकी रचना निषेधात्मक है ही वह वैसे ही रहे । जो जन्मजात मांसाहारी हैं उनके लिये इतने शब्द और जोड़ दिये जायें कि पक्षमें या मासमें इतने दिन खाना । इससे नियमकी निषेधात्मकता भी अक्षुण्ण रहेगी और नियम भी अधिक व्यवहार्य हो सकेगा । " डा० रामाराव M. A., Ph. D. ने पुस्तकावलोकन व आचार्यवरके साक्षात्सम्पर्कसे अणुव्रतोंके विषयमें अवगत होनेके पश्चात् अन्य सुझावों के साथ निम्नोक्त सुझाव दिया- “जो मांसभक्षी हैं उनके लिये सप्ताह में कुछ दिन खुले रहने चाहिएँ, घरके लिये न भी हो पार्टी आदिमें जहाँ कि खाना अनिवार्य - सा हो जाया करता है । " मिस्टर एस० ए० पीटरसका सुझाव था कि मांसाहारियोंसे मांस एकाएक नहीं छोड़ा जा सकता। उनके लिये मास या सप्ताह में कुछ दिनका प्रतिबन्ध होना चाहिये । मि० राडरिकने पूर्वोक्ति प्रकारके सुझावके साथ २ इस बात पर विशेषतया जोर दिया था कि दवाई आदिके रूपमें तो इस नियमसे व्यक्ति खुला ही रहना चाहिये । उक्त नियमके सम्बन्ध में ऐसे भी बहुतसे सुझाव आये और आ रहे हैं कि मांस सम्बन्धी नियम ज्यों-का-त्यों रहना चाहिए। अस्तु, इस सम्बन्ध में अभीतक कोई दूसरा निर्णय नहीं हो पाया है। आशा है और भी विचारक इस विषय में अपने तटस्थ सुझाव देंगे । इस नियमकी संघटनाको देखकर कई एक विचारकोंको अहिंसा अणुव्रत पर सम्प्रदायिक दृष्टिकोणकी छाप सी लगी प्रतीत होतीहै ; श्री मशरूवाला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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