________________
१२
अणुव्रत-दृष्टि दे रहा है। वह भी बूंघट और घरकी चहर दिवारियोंके बाहर मुक्त वातावरणमें सांस लेना चाहती है। प्रत्येक वस्तुमें अच्छाई और बुराई दोनों रहती हैं । स्वतन्त्रताके नाम पर कुछ चरित्रकी मर्यादाका भी अतिरेक होने लगा है। स्त्रियों और पुरुषोंका एक साथ घूमना, खेलना, सिनेमा आदि देखने जाना आजकल सभ्यताका रूप लेने लगा है। उस सभ्यतामें स्व और परका भेद भी नगण्य हो गया है। एक महिला अपने पति, पिता व भाईकी तरह अन्य किसी व्यक्तिके साथ भी यत्रतत्र जाने में संकोच नहीं करती। बहुधा ये ही प्रसङ्ग पतमके अनन्य कारण बन जाया करते हैं। तत्प्रकारके प्रसङ्गोंका स्पष्ट निरोध यह नियम करता ही है ; साथ-साथ नियमकी दृष्टिको भी उल्लिखित प्रकारसे समझ लेना . प्रत्येक अणुव्रती पुरुष एवं महिलाके लिये अत्यावश्यक है।
१०-वेश्याका नृत्य व गान न कराना।
वेश्या-नृत्य पूवजोंसे विरासतमें मिली एक कुप्रथा है। लोग कहते हैं'वेश्या नृत्यका विरोध क्यों किया जाता है ? प्राचीन कालमें भी राजा, महाराजा, सम्राट् धनी-मानी, श्रेष्ठजन विवाहादिके उपलक्षमें, अन्य मांगलिक उत्सवों तथा विशेष अवसरों पर वेश्या-नृत्यको महत्व दिया करते थे, राजदरबारोंका तो यह एक प्रमुख अङ्ग रहा है ।' उन लोगोंसे पूछना चाहिये - 'यह किसने कब मान लिया था कि प्राचीन कालमें सब अच्छे हो कार्य हुआ करते थे या उस समय किसी कुप्रथाका जन्म ही न हुआ था।' बुराई और अच्छाई सब कालोंके साथ चलती हैं, हो सकता है, वर्तमानकी कुछ प्रथाओंको हम आज नहीं समझ रहे हैं, आनेवाली पीढ़ी समझेगी या आज़ जो प्रथा इतनी दोषपूर्ण नहीं जितनी आनेवाले युगमें होगी और उस युगके कर्णधार उस विरासतकी निधिको सदाके लिये समाप्त कर देनेका प्रयत्न करेंगे। वेश्या-नृत्यका प्रचलन चाहे कबसे ही हो या कैसा ही रहा हो आज वह सब प्रकारसे हानिप्रद है इसमें कोई भी सभ्य दो मत नहीं हो सकते। अणुव्रती किसी भी समारोहके उपलक्षमें वेश्या-नृत्य न कराये न किसीको ऐसा करनेकी सम्मति दे।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com