Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 110
________________ १०० अणुव्रत-दृष्टि दूसरी ओर यदि ३२ भोजन और ३३ तरकारीकी किंवदन्तीको चरितार्थ किया जाता है तो यह एक बहुत बड़ा सामाजिक असंतुलन होता है जो आजके समता प्रधान युममें अखरने जैसा भी होता है। ३१ की संख्या एक मझोली संख्या है जो व्यक्ति दिनमें ५ प्रकारके फल खा लेते हैं, ५-७ प्रकारकी सब्जी खा लेते हैं । २-४ प्रकारकी मिठाई और ५-७ प्रकारकी खटाई और पानी रोटीसे लेकर तीन बारके भोजनमें बीसों पदार्थ खा लेते हैं, उनकी आदतमें यह संख्या एकाएक बहुत संकोच ला देती है। जो व्यक्ति रोटी, शाकादि ५-१० पदार्थोंसे अपना निर्वाह करते हैं उनकी अपेक्षा यह संख्या बहुत बड़ी है किन्तु वर्तमानमें जिस वर्गमें अधिकतया अणुव्रतोंका प्रसार हो रहा है, उसकी दृष्टिसे यह संख्या उपयुक्त ही है। भविष्यमें इसका कम होते रहना तो संभावित है ही। ___ द्रव्यकी क्या परिभाषा है ? यह जाननेके लिये नीचे आचार्य श्री द्वारा निर्धारित कुछ द्रव्य परिभाषाके सूत्र दे दिये जाते हैं, जो एतद्विषयक जानकारीके लिये आवश्यक हैं ___ खाद्य-पेय द्रव्य परिभाषा (१) स्वतन्त्र नाम स्वतन्त्र द्रव्यका सूचक है जैसे-दूध, दही, चावल, चीनी, शक्कर आदि। (२) किसी नामके साथ कोई ऐसा नाम संयुक्त होता हो जो उस पदार्थका मूल कारण हो और उसे वह अन्य पदोंसे पृथक् करता हो तो वह शब्द संयुक्त नाम स्वतन्त्र द्रव्य है ; जैसे-बाजरेकी रोटी, गेहूंकी रोटी, मूंगका पापड़, मोढका पापड़, आमका पापड़ आदि, अर्थात् रोटी इन सामान्य नामोंके होते हुए भी पूर्व संयोजित शब्दके कारण उपर्युक्त एक एक स्वतन्त्र द्रव्य है। स्पष्टीकरण-नियम नं २ की परिभाषामें गायका दूध और भसका दूध, कुएँका पानी और बरसातका पानी पृथक्-पृथक् द्रव्य होते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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