Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 126
________________ अणुव्रत दृष्टि “आचार्य तुलसीने किरसे इस प्रथाका प्रचार करनेके लिये एक अणुव्रती संघ नामक संस्था शुरू की है। इस संघ में सबका प्रवेश हो सकता है, जाति, धर्म, रंग, स्त्री, पुरुष आदिका कोई विचार नहीं किया जाता। इस संघने अपने सदस्योंके लिये सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि नाम देकर कुछ विभाग बनाये हैं और उनमें हरेक अणुव्रत बताये हैं । कुछ नियम तो इतने प्रत्यक्ष हैं कि हरेकको मानने चाहिये। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें और ज्यादा कसना चाहिये । लेकिन, सच तो यह है कि युद्धके बाद दुनियामें मानवताका इतना पतन हो गया है कि वह समाज के प्रति अपने मामूली कर्तव्यको भी नहीं निवाह रहा है। इसलिये यदि यहाँ उनकी एक-एक कर गिनती की गई है, तो अच्छा ही है । ११६ “यद्यपि यह संघ सब धर्मोके मानने वालोंके लिये खुला है और हंस के सिवाय बाकी सब व्रतोंके नियम उपनियम साम्प्रदायिकतासे मुक्त सामाजिक कर्त्तव्योंपर निगाह रखकर बनाये गये हैं, लेकिन अहिंसाके नियमोंपर पंथके दृष्टिकोणकी पूरी छाप है । उदाहरणके लिये -- शुद्ध शाकाहार, वह चाहे कितना ही वांछनीय हो, भारत सहित मानव समाजकी हालत और रचनाको देखते हुए, मांस-मछली- अण्डे आदिसे पूरा परहेज करने और उनसे सम्बन्ध रखनेवाले उद्योगोंसे बच्चे रहने का व्रत जैनों और वैष्णवोंकी एक छोटी-सी संख्या ही ले सकती है। यही बात रेशम और रेशमके उद्योगके लिये भी लागू है । ( यह देखकर कौतुहल होता है कि मोती और मोतियोंके व्यापारका उल्लेख नहीं किया गया है, यद्यपि उनमें भी उतनी ही हत्या होती है, जितनी कि रेशममें, हालांकि जैनांमें यह व्यापार काफी फैला हुआ है ) । " लेकिन यह छोटी-मोटी खामियां छोड़कर इतना तो कहना ही चाहिये कि सिद्धांत और नियमके प्रति लापरवाह आज के रवैयेके खिलाफ लोगोंका विवेक जगानेकी यह कोशिश प्रशंसनीय है । संघका एक सम्मेलन मईके पहले हफ्तेमें दिल्लीमें हुआ था और खबर है कि लगभग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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