Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 128
________________ ११८ अणुव्रत-दृष्टिं अपने निराशावादको दूर करके सत्ययुगके प्रगट होनेपर विश्वास करना ही पड़ता है। ____ "इतिहासमें ऐसे उदाहरण तो मिलते हैं, जब कि एक या दूसरे पाप में फंसे हुए स्त्री या पुरुष वर्षों के बाद भी निश्चयसे प्रायश्चित करके पीठ मोड़कर उधरसे हट गए। उन्होंने वैसा व्यक्तिगत रूपसे किया है । किसी संस्था या समाजके सदस्यके रूपमें नहीं। जीवनकी पवित्रताके लिये हुई यह सामूहिक जागृति एक घटना है, जो कदाचित् ही देखनेमें आती है। ___"जब शराबी भी सामूहिक रूपमें शराबका परित्याग करते हैं, जब डाकू भी इकट्ठे होकर सभ्य नागरिक बननेका निश्चय करते हैं और अनुचित रूपसे कमाये गये पैसेपर फलने फूलनेवाले व्यापारी एकत्रित होकर सचाईसे जीवन बितानेका आन्दोलन शुरू करते हैं, तब कौन उनसे प्रभावित न होगा ? वर्षमें सारे ही दिन तो ऐसे नहीं होते, जिनमें सच्चाई और भलाईको जमा करके सारी दुनियाके लिए उनका प्रदर्शन किया जाता है। ___ "इसलिये नैतिक सुधारके लिए जो भी सामूहिक प्रयत्न किया जाता है, उसपर जनताका ध्यान जाना ही चाहिए और उसकी प्रशंसा भी को जानी चाहिये। गत रविवारको जिन ६०० व्यक्तियोंने भविष्यमें कालाबाजार या चोरबाजार न करनेकी गम्भीर प्रतिज्ञा ग्रहण की है और अपने जीवनकी पुस्तकमें जिन्होंने एक नया अध्याय जोड़ा है, ये केवल ग्राहकोंके ही धन्यवादके अधिकारी नहीं हैं, किन्तु समस्त नागरिकों का धन्यवाद उन्हें मिलना चाहिये। उन्होंने यह सत्प्रतिज्ञा आचार्य तुलसीके सामने अणुव्रती संघके पहले वार्षिक अधिवेशनके अवसरपर ग्रहणकी थी। इस संघकी स्थापना मानव-जीवनको-समस्त बुराइयोंसे शुद्ध करनेके लिये की गई है। सभी तरहकी बुराइयोंपर विजय पानेका यह सम्मिलित या सामूहिक आन्दोलन शुरू किया गया है, उसकी गम्भीरताका पता तो इस विस्मयजनक तथ्यसे लगता है कि आचार्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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