Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 114
________________ १०४ अणुव्रत-दृष्टि असंदिग्ध विषय पर अधिक विवेचन अनावश्यक है। मनुष्यके विविध पतनोंका यह प्रवेश द्वार है। इसमें प्रविष्ट होनेसे अणुव्रती स्वयं बचे और अन्य व्यक्तियोंको भी बचानेका अहिंसात्मक प्रयत्न करे। स्पष्टीकरण सोल्ही, नकसी, आदि सभी राज्य निषिद्ध प्रकार नियमकी परिभाषामें आ जाते हैं। १०-तपस्या ( उपवास ) के उपलक्षमें वस्त्र, आभूषण, चीनी, मिश्री आदि न लेना न देना। उक्त नियम यद्यपि किसी एक समाज विशेषसे अधिक सम्बन्धित है तथापि इसका तात्पर्य यह नहीं हो जाता कि अणुव्रती-संघ किसी समाज विशेष तक ही सीमित है । उसका ध्येय ब्यापक है, ज्यों-ज्यों जिस-जिस समाजमें इसका प्रसार प्रारम्भ होगा त्यों-त्यों उस समाज सम्बन्धी विशेष नियम बनते रहेंगे ऐसी इस नियमके पीछे दृष्टि है। जैन समाजमें यह प्रथा विशेषतः प्रचलित है, पुरुष व महिलायें लम्बेलम्वे उपवास करती हैं। उपवासोंके अन्तमें बड़े-बड़े समारोह होते हैं मातृ पक्ष व श्वसुर पक्षसे रुपये गहने आदि दिये जाते हैं। आत्मसाधनाके साथ द्रव्यका यह प्रलोभन तपस्याकी प्रभाको क्षीण कर देनेवाला होता है। चूंकि जैन समाजमें अणुव्रती-संघका अपेक्षाकृत अन्य समाजोंके अधिक प्रचार अभी हो रहा है। अतः इस प्रथाको समाप्त कर देनेके उद्देश्यसे इस नियमको संघकी मूल नियमावलीमें ही स्थान दे दिया गया है। ___ तपस्या विषयक जीमनवारका निषेधक नियम अहिंसा अणुव्रतमें आ चुका है। यह नियम आभूषण आदि लेने और देनेका निषेध करता है। दोनों नियम सम्बन्धितसे हैं। दोनों ही भावोंको मिलाकर एक ही बन सकता था किन्तु यह मानते हुये कि जीमनवार आदि करना अग्नि वनस्पति आदिकी हिंसासे अधिक सम्बन्धित है और आभूषण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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