Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 120
________________ ११० अणुव्रत-दृष्टि . (२२) अपने विचारोंसे सहमत नहीं होने वालोंसे द्वष तो नहीं किया ? - (२३) जिह्नाकी लोलुपतावश अधिक तो नहीं खाया पीया ? (२४) ताश, चोपड़, केरम आदि खेलोंमें समयको तो बर्बाद नहीं किया ? (२५) घरके या पड़ोसके व्यक्तियोंसे झगड़ा तो नहीं किया ? (२६) किन्हीं अनैतिक या अप्रिय कामोंमें भाग तो नहीं लिया ? (२७) किसीके साथ व्यक्तिगत या सामूहिक रूपसे कोई षड्यंत्र या पाखण्ड तो नहीं रचा जो देश, समाज व वर्गकी अशांतिके साथ स्वयंके लिये आत्म-ग्लानिका कार्य हो ? (२८) फिजूलखर्ची तो नहीं की? (२६) ब्लेकमें कोई वस्तु खरीदी या बेची तो नहीं ? (३०) जुआ, सट्टा, फाटका आदिमें प्रवृत्ति तो नहीं की या किसीको प्रेरणा तो नहीं दी ? (३१) विधवा स्त्री आदिको अपशकुन मानकर उनका दिल तो नहीं दुखाया ? नारी समाज ( विशेष ) . (३२) आभरण आदि बनानेके लिये पतिको बाध्य तो नहीं किया ? (३३) सास, ननद, जेठानी, देवरानी आदि पारिवारिक स्वजनोंके साथ ईर्ष्या, द्वष व कलह तो नहीं किया ? (३४) सौत, जेठानी, ननद आदि दूसरों के बच्चोंके साथ दुर्व्यवहार तो नहीं किया ? (३५) किसी विधवा बहिनका अपशब्दोंसे अपमान व तिरस्कार तो नहीं किया ? . (३६) बनाव, शृङ्गार और विषय-वासनामें शक्ति तथा समयका अपव्यय तो नहीं किया ? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142