Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 109
________________ अपरिग्रह-अणुव्रत वाला देखादेखीका संघर्ष टलेगा और इन प्रथाओंमें आई बुराइयोंकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित होगा। ४-अपने लोभके लिये रोगीकी चिकित्सामें अनुचित समय न लगाना। नियम वैद्य व डाक्टरोंसे सीधा सम्बन्ध रखता है । चिकित्सकोंके व्यवसायमें आई बुराइयों में यह एक बड़ी बुराई है, अनैतिक आचरण है। यदि अणुव्रती वैद्य हो तो उसे इससे सर्वथा बचना होगा। इस व्यवसाय में और भी अनेकों बुराइयां हैं जैसे-नकली दवाइयोंको काममें लेना, होस्पिटल आदिमें काम करते हुए मरीजोंसे अतिरिक्त फीस लेना व दवाइयोंका दुरुपयोग करना आदि। अणुव्रती चिकित्सक तत्प्रकारकी समस्त बुराइयोंसे बचता रहे। अणुव्रती संघका ध्येय किसी भी व्यवसायमें आई समस्त बुराइयोंको दूर करनेका है; यद्यपि अभी तक ऐसे नियमोंकी ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है जो अलग-अलग व्यवसायसे सीधा सम्बन्ध रखते हों। अभी तक ऐसे नियमोंको ही विशेष प्रश्रय दिया गया है जो साधारणतया सभी व्यक्तियोंसे सम्बन्धित हों या ब्यापारी आदि जिन वर्गोमें अभी अधिक प्रसार हो रहा है। अन्य वर्गों में जैसे-जैसे प्रसार होगा वैसे-वैसे आवश्यक नियम और बन सकेंगे। ५-एक दिनमें खाद्य-पेयके ३१ से अधिक द्रव्योंका व्यवहार न करना। __ खाद्य-संयम भी अनेक दृष्टियोंसे लाभप्रद है। प्रायः सभी धर्मशास्त्रोंमें इस पर जोर दिया गया है, और आत्म-साधनाका एक असाधारण अंग बताया गया है, महात्मा गांधीने सो अस्वादवृत्तिको अपने ७ व्रतोंमें स्वतंत्र व्रतका स्थान दिया है। स्वास्थ्य और आजके अन्नाभाष' में सामाजिक दृष्टिसे भी इसका महत्व कम नहीं है। एक ओर जब मनुष्योंको भर पेट खाने के लिये जैसा-पैसा अन्न भी नहीं मिल रहा है, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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