Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 106
________________ ६६ अणु-दृष्टि है, इस आदर्श पर स्वयं अणुव्रती चले और दूसरोंको चलानेका प्रयत्न करे । स्पष्टीकरण चोरबाजार में खरीदना और बेचना सब प्रकार से हेय है और वह चोर बाजार ही है । तथापि आजके वातावरणमें खाद्य वस्तुएं यदि चोरबाजारसे न खरीदें तो जीना भी बहुत कष्टसाध्य हो जाता है । ऐसी स्थितिमें व्यापारार्थ विशेषण जोड़ देना आवश्यक माना गया है । इससे धनार्जन के हेतु चोर - बाजारका सर्वथा निषेध हो जाता है । बहुत से अणुव्रती खाने-पीने व पहननेकी वस्तुएं भी चोर बाजारसे नहीं खरीदते । ऐसा करने में अनेक कठिनाइयोंका उन्हें सामना करना पड़ता है। यह उनका विशेष आदर्श है। अन्य अणुव्रतियोंको भी उनका अनुकरण करना चाहिये । जो व्यक्ति व्यवसायसे सर्वथा मुक्त है अर्थात् निवृत्त है उसके पुत्रपौत्रादि स्वतंत्रतापूर्वक व्यवसाय चलाते हैं तो उस व्यक्तिके अणुव्रती होने में बाधा नहीं मानी जायगी । जिस व्यवसाय में अनेक हिस्सेदार हैं और यदि वे ब्लैक छोड़ना नहीं चाहते तो अणुव्रतीको या तो उस व्यवसायसे अलग होना पड़ेगा या वह ब्लैककी सम्पतिसे कुछ भी हिस्सा न ले सकेगा और न अपने हाथोंसे ब्लैक कर ही सकेगा । यदि अणुव्रती किसी फार्म में मैनेजर व कार्यकर्त्ता है तो वह अपने हाथों चोरबाजार नहीं कर सकता, न ऐसा करनेके लिये दूसरेको आदेश ही दे सकता है । जिस 'वस्तुका जो मूल्य राज्यने निर्धारित कर दिया है किसी रूप में उससे अधिक मूल्य लेना ब्लैक माना गया है। मकान किरायेके सम्बन्धसे पगड़ी सिलामी आदि लेना ब्लैक में सम्मिलित है । ब्याज विषयक राजकीय निर्धारणके सम्बन्धमें यह नियम लागू नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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