Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 100
________________ - अणुव्रत-दृष्टि ६-राजकीय वैवाहिक परिभाषासे अल्पवयस्क सन्तान का विवाह न करना। वृद्ध विवाहकी तरह बाल-विवाह भी सर्वमान्य कुप्रथा है। इसका अन्त करनेके लिये सरकारको भी प्रतिबन्ध लगाना पड़ा है। तब भी लोग पूर्णतः इस प्रथासे विमुख नहीं हो पाये हैं। प्रतिबन्धके होते हुए भी नाना प्रकारसे बचकर लड़के लड़कियोंके नियम निषिद्ध विवाहकर ही दिया करते हैं। अणुव्रती इस नियमको आत्मानुशासन ही मानकर पूर्णतः निभानेके लिये दृढ़ प्रतिज्ञ रहे। स्पष्टीकरण जिस अणुव्रतीके लड़के व लड़की की सगाई उसके अणुव्रती होनेसे ' पूर्व हो चुकी है उसके विवाहके सम्बन्धमें उक्त नियम लागू नहीं है । . ७-जहां शील-भङ्गका प्रसंङ्ग या अन्देशा मालूम दे, ऐसी जगह नौकरी न करना या न रहना। चरित्र भ्रष्टता मनुष्यकी नैतिक मृत्यु है। अणुव्रतीके रहन-सहनका बातावरण पवित्र और सुस्पष्ट होना चाहिये। उसे ऐसे आदमियोंकी संगति और मित्रतासे बचना चाहिये जिनके साथ रहनेके कारण ही अपनी प्रतिष्ठापर धब्बा आता हो। वेश्या, नर्तकी आदिके यहां नौकरी करने का या उनके वातावरणमें ही चिरकालिक स्थिति करनेका तो उक्त नियम स्पष्ट निषेध करता ही है। ८-अकेली पर-स्त्रीके साथ एक कमरेमें रात्रि-शयन न करना। विशेष परिस्थिति अपवाद-रूप समझी गई है। चरित्रकी सुरक्षाके लिये यह नियम आवश्यक माना गया है। स्त्रीपुरुषका एकान्त-संसर्ग सिद्ध ब्रह्मचारियोंको भी कर्त्तव्य भ्रष्ट कर दिया करता है। यदि किसीके सुदृढ़ चरित्रपर यह कोई असर न भी करता हो तो भी लोगोंकी दृष्टिमें शंकास्थल तो बन ही जाता है। अतः आवश्यक है कि अणुव्रती इस विषयमें सजग रहे तथा एकान्तवासके और भी विभिन्न प्रसङ्गोंमें सावधान रहता हुआ लोकापवादसे बचे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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