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अणुव्रत-दृष्टि धनी व निर्धन बहुत ही थोड़े आदमी उससे बचे होंगे। नैतिक स्तर अधिक गिर जानेके कारण अधिक लोग यह अनुभवमें ही नहीं लाते कि हम कोई पाप कर रहे हैं। उनका ध्यान रहता है कि जितने अधिक राशन-कार्ड बनने सम्भव हैं उनसे कम बनवाना ही मूर्खता है, सभी तो अधिक बनवाते हैं। सोचा जा सकता है किआत्म पतनके साथ-साथ ऐसी भावनाओंसे अन्नाभावके युगमें कितनी बड़ी राष्ट्रीय अव्यवस्था होती है। अणुवतीको किसी भी पापके लिये गताऽनुगतिक नहीं होना है, वह वास्तविकताका पथिक है। उसे बड़े असत्योंकी तरह इन छोटे असत्योंसे भी बचकर रहना होगा। बड़ी झूठ बोलनेका तो किसीकिसीके और कभी-कभी काम पड़ता है, साधारण असत्योंका प्रसङ्ग प्रत्येक व्यक्तिके जीवनमें आता ही रहता है। उन असत्योंसे बचनेसे ही चारों ओरसे वातावरणमें अणुव्रतोंकी सुरभि फैल सकती है। आज तकको अवधिमें अणुव्रतियोंने जब-जब अपने राशन-काझैसे अपने आप कहकर अतिरिक्त संख्या व्यवस्थापकों द्वारा घटवाई उनका इतना अच्छा प्रभाव उन पर पड़ा कि अब आवश्यकतानुसार वे जब कभी संख्या बढ़वाना भी चाहते हैं उनका कार्य सबसे पहले कथन मात्रसे होता है। आदर्श पर चलने में कठिनाई होती है पर लाभ भी अवश्य होता है।
स्पष्टीकरण - घरका कोई व्यक्ति लम्बी अवधिके लिये यदि बाहर चला गया हो तो अणुव्रती उसकी अतिरिक्त संख्यासे लाभ नहीं उठा सकता।
१४-किसीको झूठा प्रमाणपत्र ( Certificate ) न देना । : इस नियमका सम्बन्ध वैसे तो मास्टर, डाक्टर आदिसे अधिक है वैसे सभी व्यक्तियोंसे जिनका प्रमाण पत्र जहाँ चलता हो। असत्य प्रमाण पत्र देनेके मुख्य कारण हैं-रिश्वत, दबाव, सिफारिश, निजीपन आदि। अणुव्रती किसी भी उक्त प्रकारके कारणसे असत्य प्रमाण पत्र न दे। .
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