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अचौर्य अणुव्रत
“दंतसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं” दंतशोधनार्थ अदत्त तृण मात्रा भी ग्रहण विवर्जित है, चोरी है। अचौर्य्यके इस सिद्धान्तको अपना लक्ष्य मानकर अणुव्रती इसकी साधनामें सचेष्ट रहे । कमसे कम वह ऐसी चोरीसे तो अवश्य बचे, जो लोक निन्दनीय हो ।
इस सम्बन्धमें निम्नाङ्कित नियमोंका पालन अणुव्रतीके लिये अनिवार्य है :
१ - ताला तोड़कर, दीवार आदि फोड़कर, गठरी या तिजोरी खोलकर, डाका डालकर या पाकेटमारी करके किसी वस्तुकी चोरी
न करना ।
२ - अन्यकी पड़ी वस्तुको चोरवृत्तिसे न उठाना ।
किसी पड़ी वस्तुको चोरवृत्तिसे न उठाना, इतने मात्रसे निर्दिष्ट प्रकारकी समस्त चोरीका निषेध हो जाता है, तथापि स्पष्टताके लिये चोरी विभिन्न प्रकारोंका उल्लेख करनेके लिये नियम दो कर दिये गये हैं । और भी उस प्रकारकी चोरीके जितने प्रकार होते हों अणुव्रती 'बचता रहे ।
स्पष्टीकरण
मार्गादिमें पड़ी वस्तु यदि इस बुद्धिसे उठाई जाती है कि यदि इसका मालिक मिला तो उसे दे दूंगा, तो वह चोरी नहीं मानी गई है।
दो भाइयोंके अधिकारकी वस्तु यदि एक भाईके अधिकारमें है और उस वस्तुको लेकर झगड़ा चल रहा है या चलनेवाला है तो अणुव्रती भाई ताला तोड़कर, तिजोरी खोलकर, चोरकी विधिसे वह वस्तु अपने अधिकारमें नहीं कर सकता । अणुत्रतीको अवैध उपायोंको काममें लाना श्रेयस्कर नहीं है ।
अणुव्रती दो या अधिक व्यक्तियोंके अधिकारकी बस्तुको हजम करनेकी नियतसे अपने पास नहीं रखेगा, जबतक वह वस्तु विवादग्रस्त
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