Book Title: Anuvrat Drushti
Author(s): Nagraj Muni
Publisher: Anuvrati Samiti

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Page 90
________________ ८० - अणुव्रत-दृष्टि पड़ता है। अणुव्रती तनिक लोभके लिये इस अनैतिक मार्गपर न जाय। यद्यपि नियममें एक देशसे दूसरे देशका निषेध किया गया है तो भी उपलक्षणसे एक देशके विभिन्न प्रान्त भी नियमकी मर्यादामें आ जाते हैं। जैसे भारतवर्ष में ही वितरण व्यवस्थाकी दृष्टिसे अन्न बस्त्र व चीनी आदिके लिये एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें ले जानेका कहीं-कहीं राजकीय प्रतिबंध है । अणुव्रती ऐसे व्यापार नहीं करेगा जो इस राजकीय व्यवस्थाके भङ्गसे ही सम्भव हों। नियममें 'न बेचना' इस शब्दसे यह स्पष्ट हो जाता है । यह नियम तत्प्रकारके व्यापारका ही निषेधक है, व्यवहारोपयोगी वस्तुओंके विषय में लागू नहीं है किन्तु इसका तात्पर्य यह भी नहीं समझ लेना चाहिए कि उन वस्तुओंके नामसे अणुव्रती जैसी तैसी प्रवृत्ति करता रहे । उसे प्रत्येक नियम बढ़ते हुए परिणामसे पालन करना है । बहुत प्रकारकी कठिनाइयों को ध्यानमें रखते हुए यह मर्यादा निर्धारितकी गई परन्तु इसलिये नहीं कि उस मर्यादासे अणुव्रती यथासाध्य लाभ उठानेकी सोचता रहे। . इस नियमके अनुसार अणुव्रती इल्लीगल एक्सचेंज डिफ्रेसका व्यवसाय नहीं कर सकता। नियमके सम्बन्धमें एक नोट दिया गया है । जनतंत्रका युग है, अणुव्रती जड़ होकर ही जीवन बसर नहीं करता है। वह जनतंत्र साम्राज्य का आदर्श नागरिक है, वह राजनैतिक सामाजिक परिस्थितियों और परिवर्तनोंसे परे नहीं है। हर विषय में उसे औचित्य और अनौचित्यको सोच कर ही चलना पड़ता है। नियम भङ्ग करनेमें अनैतिक दृष्टि ही वर्जित है जोकि मनुष्यके व्यक्तिगत स्वार्थोसे ही अपेक्षित है। सिद्धान्तके तौर पर सविनय अवज्ञा भङ्गके विषयमें अणुव्रती स्वतंत्र है, यही इस नोटका तात्पर्य है। ५-किसी चीजमें मिलावट कर या नकलीको असली बताकर न बेचना ( मिलावट जैसे- दूधमें पानी, घीमें वेजीटेबल घी और आटे में सिंगराज; नकलीको असली जैसे-कलचर मोतीको असली बताना)। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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