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अणु-दृष्टि
और वहाँकी स्त्रियोंको तमाकू सूँघते देखा, विनोदके तौर पर यहाँकी जातियोंके लिये एक प्रिय वस्तु बनी । यूरोपसे वह भारतवर्ष और एशियाके अन्य भूभागों में आई। देखा आपने । तमाकूका इतिहास । विनोद २ में आई, आज धक्के खाकर भी यहाँसे बिदा नहीं लेती । किन्तु अणुव्रती तो अपने यहाँसे व्यक्तिगत रूपसे इसे बिदा दे ही देंगे । यह व्यक्तिगत सुधार ही समष्टि सुधारका प्रतीक होगा ।
२७ - विवाह, होली आदि पर्वोंमें गन्दे गीत व गालियां न गाना एवं अश्लील व्यवहार न करना ।
अशिक्षित समाजों में तो उक्त प्रसङ्गों पर अश्लील गीत व गालियाँ गानेका ढर्रा है ही, कतिपय अपने आपको सभ्य होनेकी डींग हाँकनेवाले लोगों में भी ऐसे प्रसङ्गों पर अश्लीलताका मूर्त रूप दृष्टिगोचर होता है । भले-भले आदमी होलीके अवसर पर ऐसे होते हैं मानों उनकी समझका दिवाला ही निकल गया हो। वे इतने बेभान होकर गंदे गीत गाते हैं, कि चाहे स्त्रियाँ पासमें खड़ी हों, चाहे बच्चे उनकी करतूतोंको देख रहे हों, वे यह नहीं सोच सकते कि हमारी प्रवृत्तियोंका उन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। पर्दे और अवगुंठनमें रहनेवाली लञ्जावती स्त्रियाँ जमाई और उसके सम्बन्धियोंको गालियाँ ( गन्दे गीत ) गाने बैठती हैं तो बेचारे विवेकशील व्यक्तियोंके लिये कानों में अंगुली डालनेका प्रसङ्ग उपस्थित हो जाता है । अणुव्रती के लिये चाहे वह पुरुष व महिला कोई भी हो, आवश्यक है, ऐसी प्रवृत्तियोंसे स्वयं बचा रहे और इन कुप्रथाओंको समाजसे 'दूर करनेके लिये यथासाध्य अहिंसात्मक प्रयत्न भी करे ।
२८–होलीके पर्व पर राख आदि गन्दे पदार्थ दूसरों पर न डालना । पर्व और त्योहार किसी विशेष सामाजिक उद्देश्यको लेकर प्रारम्भ होते हैं पर आगे चलकर उसकी वास्तविकता लुप्त हो जाती है और लोग उसकी जड़ परम्पराको ही सब कुछ मानकर उसके जड़ उपासक हो जाते हैं। सही अर्थमें सांप चला जाता है, लोग लकीरको पीटते हैं । इस होली पर्वके तो न कोई प्रामाणिक इतिहास ही है और न इस पर होनेवाली
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